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पितृ स्तोत्रम् | पितृ स्तुति - संस्कृत गीतिकाव्य

DeepakDeepak

पितृ स्तोत्रम्

पितृ स्तोत्रम्, पितृदेव को समर्पित सर्वाधिक लोकप्रिय स्तुतियों में से एक है। पितृ स्तोत्रम् का वर्णन गरुड़पुराण में प्राप्त होता है। गरुड़पुराण में यह स्तोत्र पितृदेव को समर्पित किया गया है। पितृ दोष आदि से मुक्ति एवं पितृगणों को प्रसन्न करने हेतु पितृ स्तोत्रम् का पाठ किया जाता है। पितृ पक्ष अथवा श्राद्ध के दिनों में इस स्तोत्र का पाठ करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं। पितृ स्तोत्रम् को पितृ स्तुति भी कहा जाता है।

॥ अथ श्री पितृ स्तोत्रम् ॥

रुचिरुवाच

अर्चितानाममूर्तानां पितॄणां दीप्ततेजसाम्।

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्॥1॥

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।

सप्तर्षोणां तथान्येषां तान्नमस्यामि कामदान्॥2॥

मन्वादीनां च नेतारः सूर्याचन्द्रमसोस्तथा।

तान्नमस्याम्यहं सर्वान्पितॄनप्युदधावपि॥3॥

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।

द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलिः॥4॥

प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरुणाय च।

योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलिः॥5॥

नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।

स्वायम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे॥6॥

सोमाधारान्पितृगणान्योगमूर्तिधरांस्तथा।

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्॥7॥

अग्निरूपांस्तथैवान्यान्नमस्यामि पितॄनहम्।

अग्निसोममयं विश्वं यत एतदशेषतः॥8॥

ये च तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।

जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः॥9॥

तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।

नमोनमो नमस्तेऽस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुजः॥10॥

॥ इति श्रीगारुडे महापुराणे पूर्वखण्डे प्रथमांशाख्ये आचारकाण्डे
रुचिकृतपितृस्तोत्रं नामैकोननवतितमोऽध्यायान्तर्गतम् ॥
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