दुर्गा पूजा एक प्रसिद्ध हिन्दु त्यौहार है और इस दौरान देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। दुर्गा पूजा को दुर्गोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। दुर्गोत्सव पाँच दिनों तक मनाया जाता है। इन पाँच दिनों को षष्ठी, महासप्तमी, महाष्टमी, महानवमी और विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है। (हिन्दु धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार दुर्गा पूजा के साथ में चण्डी-पाठ को महालय अमावस्या के अगले दिन से शुरू किया जाना चाहिए। महालय पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन हिन्दु लोग अपने पूर्वजों को श्रद्धान्जली अर्पित करते हैं, इसलिए यह दिन कोई भी शुभ कार्य शुरू करने के लिए सही नहीं माना जाता है।)
पश्चिम बंगाल को छोड़कर अधिकांश राज्यों में महालय अमावस्या के अगले दिन प्रतिपदा तिथि को घटस्थापना की जाती है। घटस्थापना दुर्गा पूजा के दौरान होने वाले कल्पारम्भ के समान होती है जिसमें देवी दुर्गा का आवाहन किया जाता है। सामान्यतः कल्पारम्भ देवी पक्ष के दौरान षष्ठी तिथि के दिन होता है। क्षेत्रीय प्रथा और धारणाओं के अनुसार शारदीय नवरात्रि के दौरान होने वाली दुर्गा पूजा नौ दिन से लेकर एक दिन तक हो सकती हैं जिसका उल्लेख धर्मसिन्धु में भी किया गया है।
देवी पक्ष, पितृ पक्ष की महालय अमावस्या के अगले दिन से शुरू हो जाता है। देवी दुर्गा का धरती पर आगमन देवी पक्ष के पहले दिन होता है और दुर्गा विसर्जन के दिन वह प्रस्थान करती हैं। दुर्गा माँ के आगमन और प्रस्थान वाले दिन महत्वपूर्ण होते हैं और इन दिनों से आने वाले समय का अनुमान किया जाता है। इस अनुमान के आधार पर आने वाले समय को शुभ अथवा अशुभ घोषित किया जाता है।