☰
Search
Mic
हि
Android Play StoreIOS App Store
Setting
Clock

-7918 नवरात्रि के दौरान महाष्टमी पूजा का दिन और समय कोलंबस, Ohio, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये

DeepakDeepak

-7918 महाष्टमी

कोलंबस, संयुक्त राज्य अमेरिका
महाष्टमी
25वाँ
मई -7918
Saturday / शनिवार
देवी दुर्गा का भव्य रुप
Durga Utsava

महाष्टमी पूजा का समय

दुर्गा अष्टमी शनिवार, मई 25, -7918 को
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - मई 24, -7918 को 16:14 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त - मई 25, -7918 को 17:57 बजे

टिप्पणी: सभी समय २४-घण्टा प्रारूप में कोलंबस, संयुक्त राज्य अमेरिका के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय जो आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं, आगामि दिन से प्रत्यय कर दर्शाये गए हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।

-7918 महाष्टमी, दुर्गा अष्टमी

महाष्टमी, दुर्गा पूजा का दूसरा दिन है, जिसे महा दुर्गाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। महाष्टमी, दुर्गा पूजा के सर्वाधिक महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। महाष्टमी पर दुर्गा पूजा का आरम्भ, महास्नान एवं षोडशोपचार पूजा से होता है। महाष्टमी पूजा, महा सप्तमी पूजा के समान ही की जाती है, किन्तु प्राण प्रतिष्ठा मात्र एक बार महा सप्तमी पर ही की जाती है।

महाष्टमी के दिन नौ छोटे कलशों की स्थापना की जाती है तथा उनमें माँ दुर्गा के नौ शक्ति रूपों का आह्वान किया जाता है। महाष्टमी पूजा के अवसर पर देवी दुर्गा के समस्त नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है।

महाष्टमी पर अविवाहित, अर्थात कुँवारी कन्याओं को भी साक्षात देवी दुर्गा का रूप मानकर उनकी पूजा की जाती है। दुर्गा पूजा के अवसर पर छोटी कन्याओं के इस पूजन को कुमारी पूजा के रूप में जाना जाता है। विभिन्न क्षेत्रों में दुर्गा नवरात्रि के सभी नौ दिनों के दौरान कुमारी पूजा की जाती है। दुर्गा पूजा उत्सव में एक दिवसीय कुमारी पूजा करने हेतु महाअष्टमी के दिन को ही प्राथमिकता दी जाती है।

महाष्टमी के पावन अवसर पर पौराणिक सन्धि पूजा भी की जाती है। अष्टमी तिथि के अन्तिम चौबीस मिनट तथा नवमी तिथि के पहले चौबीस मिनट की समयावधि को सन्धिकाल कहा जाता है। सम्पूर्ण दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान सन्धिकाल को सर्वाधिक शुभ एवं पवित्र माना जाता है। सन्धि पूजा दुर्गा पूजा उत्सव का समापन बिन्दु होने के साथ ही अत्यधिक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इस पवित्र मुहूर्त में बलिदान अथवा पशुबलि देने की प्रथा है। जिन भक्तों को पशुबलि से आपत्ति होती है, वो इस अवसर पर केले, ककड़ी या खीरे जैसे फल व सब्जियों की प्रतीकात्मक बलि देते हैं। शास्त्रों में ब्राह्मणों द्वारा किसी भी प्रकार की पशुबलि देना निषिद्ध है। इसीलिये ब्राह्मण समुदाय केवल प्रतीकात्मक बलि ही देता है। यहाँ तक कि पश्चिम बंगाल के बहुप्रसिद्ध बेलुड़ मठ में भी सन्धि पूजा के समय केले की प्रतीकात्मक बलि दी जाती है। सन्धि काल के समय मिट्टी के 108 दीप प्रज्ज्वलित करने की प्रथा है।

Kalash
कॉपीराइट नोटिस
PanditJi Logo
सभी छवियाँ और डेटा - कॉपीराइट
Ⓒ www.drikpanchang.com
प्राइवेसी पॉलिसी
द्रिक पञ्चाङ्ग और पण्डितजी लोगो drikpanchang.com के पञ्जीकृत ट्रेडमार्क हैं।
Android Play StoreIOS App Store
Drikpanchang Donation