श्री सनत्कुमार जी ने भगवान शंकर से इच्छा प्रकट की, हे प्रभु! आपने मुझे सब वारों का माहात्म्य बताया। अब मुझे तिथि माहात्म्य के बारे में जानने की इच्छा हो रही है।
श्री उमापति बोले, "हे सनत्कुमार! श्रावण का महीना मुझे सब महीनों में सबसे अधिक प्रिय है। श्रावण मास की प्रतिपदा यदि सोमवार को पड़ती है तो श्रावण मास में पाँच सोमवार होंगे। ऐसा होने पर यह "रोटक व्रत" कहलाता है। उस दिन मनुष्य को व्रत रखना चाहिए। यह साढ़े तीन मास का भी होता है। रोटक व्रत लक्ष्मी की वृद्धि करने वाला, सब कामनाओं को पूर्ण करने वाला और समस्त सिद्धियों को देने वाला है।''
अब मैं तुमको रोटक व्रत को करने का विधान बताता हूँ। श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को प्रातः उठकर रोटक व्रत करने का इस प्रकार संकल्प करना चाहिए- आज से मैं रोटक व्रत करूँगा। हे जगद्गुरु! मुझ पर कृपा करें। इस प्रकार संकल्प कर प्रतिदिन मेरा (भगवान शंकर) पूजन करना चाहिए। अखण्डित बेल पत्र, तुलसी पत्र, नील कमल, कमल, कल्हार, कुसुम, चम्पा, मालती, कुन्द, अर्क आदि पुष्पों तथा अनेक प्रकार के ऋतुकालीन फूलों से, धूप, दीप, नैवेद्य तथा अनेक प्रकार के फलों से पूजा करनी चाहिए। पुष्पहार नाम से पाँच रोटक बनाने चाहिए। उनमें से दो रोटक ब्राह्मण को देने चाहिये। एक रोटक नैवेद्य के रूप में मुझे समर्पित करना चाहिये। दो रोटक व्रतधारी को खाने चाहिये।
केला, नारिकेल, जम्बीरी, बिजौरा नींबू, खजूर, ककड़ी, दाख, नारंगी, मातुलिंग, अखरोट, अनार और ऋतु में पाये जाने वाले फलों से अर्घ्य दान के लिए उत्तम कहा गया है। इस व्रत को पूर्ण कर लेने पर सबे कामना पूरी हो जाती हैं।
हे सनत्कुमार! अब इस व्रत का पुण्य फल सुनो। जितना फल सात समुद्र पर्यन्त भूमि दान करने से मिलता है उतना ही फल इस व्रत को विधि पूर्वक करने से प्राप्त हो जाता है। इस व्रत को पाँच वर्ष तक करने से अतुल धन सम्पत्ति प्राप्त होती है। इसके उद्यापन में सोने के दो रोटक बनाने चाहिये। पहले दिन अधिवासन करके अन्य दिनों में प्रातःकाल शिव मंत्र द्वारा घी तथा बेल- पत्रों से हवन करना चाहिये। इस प्रकार व्रत करने से मनुष्य की सब मनोकामना पूरी होती हैं।
हे सनत्कुमार! अब तुम द्वितीया के व्रत को सुनो। इस व्रत को करने वाला प्राणी लक्ष्मीवान तथा पुत्रवान हो जाता है। यह व्रत ओदुम्बर नाम से प्रसिद्ध है। यह सब पापों को नाश करने वाला है। मनुष्यों को श्रावण मास की द्वितीया तिथि को प्रातः संकल्प करके विधिवत व्रत करना चाहिये। इस व्रत में गूलर (उदुम्बर) के पेड़ की पूजा की जाती है। गूलर का पेड़ न मिल सके तो दीवार पर गूलर के पेड़ का चित्र बना लेना चाहिये। अर्चन विधि - हे उदुम्बर! आपको नमस्कार है। हे हेमपुष्पक! आपको नमस्कार है। जन्तुफलयुक्त लाल अण्ड तुल्य शलियुक्त आपको नमस्कार है। इसके बाद शिव तथा शुक्र की पूजा करनी चाहिये। गूलर के तैंतीस फलों से ग्यारह फल ब्राह्मण को, ग्यारह फल देवता को और शेष ग्यारह फल को स्वयं ग्रहण कर खाने चाहिये।
इस दिन अन्न नहीं खाना चाहिये। रात में शुक्र तथा मेरा (भगवान शंकर) अर्चन करते हुए जागरण करना चाहिये। इस प्रकार यह व्रत ग्यारह वर्ष तक करें। फिर इसका उद्यापन करें। उद्यापन में सोने का फल, पुष्प, पत्ते आदि के साथ गूलर का पेड़ बनवाकर, उसमें स्वर्ण की बनी हुई शुक्र तथा मेरी मूर्तियाँ रखकर पूजन करना चाहिये।
दूसरे दिन प्रातःकाल छोटे-छोटे गूलर के फलों से एक सौ आठ हवन करें। उदुम्बर की लकड़ी, घी तथा तिलों द्वारा हवन करना चाहिए। हवन की समाप्ति पर आचार्य का पूजन करना चाहिए। अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
फल (परिणाम) : जिस प्रकार गूलर का पेड़ फलों से लदा रहता है उसी प्रकार व्रती के यहाँ भी बहुत से पुत्र होते हैं तथा वंश वृद्धि होती है। उसे कभी धन धान्य की कमी नहीं होती।
॥ इस प्रकार श्रीस्कन्दपुराण के अंतर्गत ईश्वर सनत्कुमार संवाद में श्रावण मास माहात्म्य में "तिथि माहात्म्य" नामक ग्यारहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥