भगवान शंकर बोले, "हे सनत्कुमार! कोटिलिंग का महात्म्य तथा पुण्य का विधान बताना या वर्णन करना बहुत कठिन है। जब एकलिंग महात्म्य की कथा का वर्णन करना असम्भब है तो कोटिलिंग के महात्म्य को कौन वर्णन कर सकता है? यदि मनुष्य में कोटिलिंग निर्माण करने की शक्ति न हो तो उसे एक हजार लिंगों का निर्माण करना चाहिए। यदि इसमें भी समर्थ न हों तो सौ लिंग या फिर एकलिंग ही श्रावण मास में बनवाना चाहिए। एकलिंग के बनाने से भी जीव मेरे पास निवास करता है। कामदेव के शत्रु भगवान शंकर का “ॐ नमः शिवाय" मंत्र से पूजन करना चाहिए। घर में यज्ञ करके उद्यापन करना चाहिए। हवन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। इस व्रत को करने से असमय में मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। इस मास का व्रत बन्ध्यत्व का हरण करके सम्पूर्ण आपत्तियों को दूर करता है। रोग, शोक, सन्ताप मिटाता है। जो प्राणी पंचामृत से श्रावण मास में मेरा अभिषेक करता है वह इस शरीर को छोड़कर कैलाश में एक कल्प तक मेरे पास निवास करता है। वह प्राणी पंचामृत पीने वाला, गौ तथा धन आदि से युक्त, अत्यन्त मधुर भाषी, त्रिपुरासुरहन्ता भगवान शंकर का प्यारा बन जाता है।"
जो मनुष्य श्रावण मास में हविष्यान्न भोजन करता है, वह चावल आदि सम्पूर्ण धान्यों की अक्षयनिधि से युक्त हो जाता है। जो मनुष्य श्रावण मास में पत्तल पर भोजन करता है, उसे भोजन के लिए सोने के बर्तन प्राप्त होते हैं। जो मनुष्य श्रावण मास में जमीन पर सोता है वह कैलाश पर निवास करता है। जो मनुष्य श्रावण मास में एक दिन भी ब्रह्म-मुहूर्त में स्नान करता है उसे पूरे महीने तक नहाने का फल मिलता है। इस माह में जो मनुष्य जितेन्द्रिय होता है उसे इन्द्रियजन्य बल की प्राप्ति होती है।
इस महीने में स्फटिकमणि, पाषाण, मिट्टी तथा मरमकतमणि से निर्मित शिवलिंग या स्वयं उत्पन्न या बनाये हुए, या पिसान निर्मित अथवा पीतल या चन्दन, मक्खन निर्मित शिवलिंग में एक बार अर्चन करने से सौ ब्रह्महत्या का पाप मिट जाता है। सूर्य ग्रहण, चन्द्रग्रहण या अन्य किसी सिद्ध क्षेत्र में लक्ष जप करने से जो सिद्धि प्राप्त होती है वह सिद्धि श्रावण मास में केवल एक बार जप करने से मिल सकती है।
किसी दूसरे समय में किये गये नमस्कार तथा प्रदक्षिणा से जो एक हजार बार में फल मिलता है वह फल श्रावण महीने में एक बार नमस्कार या प्रदक्षिणा करने से मिल जाता है। यह श्रावण मास मुझे अत्यधिक प्यारा है। इस महीने में वेदपारायण करने पर सब वेद मंत्रों की अच्छी तरह सिद्धि हो जाती है। इस महीने का एक दिन भी बिना श्री सूक्त पाठ किये न बितावे। जो इसको अर्थवाद मात्र कहता है वह मनुष्य नरक को प्राप्त होता है। मनुष्य को समिधा, चरु, तिल और घी से ब्रह्मयज्ञ करना चाहिए। धूप, गन्ध, पुष्प, नैवेद्य आदि के द्वारा अर्चना करनी चाहिए। भगवान शंकर के रूपों का यथोचित ध्यान कर शक्ति द्वारा कोटिहोम, लक्षहोम और अयुत हवन करना चाहिए। तिलों का व्याहृति मंत्रों द्वारा हवन करना चाहिए। इसी को ग्रह यज्ञ का नाम दिया गया है।
हे सनत्कुमार! अब मैं तुम्हें रविवार व्रत की कथा, महात्म्य, विधि तथा पारायण को बताता हूँ। उसे ध्यानपूर्वक सुनो। प्रतिष्ठानपुर में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। उसका नाम सुकर्मा था। वह भिक्षा माँग कर गुजारा करता था। एक दिन वह एक गृहस्थ के घर में भिक्षा हेतु गया। वहाँ स्त्रियाँ रविवार का व्रत कर रही थीं। उस ब्राह्मण भिक्षुक को देखकर उन स्त्रियों ने अर्चना सामग्री को ढक दिया। उधर ब्राह्मण के मन में अर्चन विधि जानने की इच्छा जाग्रत हुई। वह बोला, "हे साध्वी महिलाओ! आप सबने इस व्रत की सामग्री को क्यों ढक दिया है? आप दयालु हैं, कृपा कर मुझे भी इस व्रत को करने की विधि बतायें। मैं अपनी दरिद्रावस्था से दुःखी हूँ। यह उत्तम व्रत श्रवण कर मैं भी इस व्रत को करना चाहता हूँ। इस व्रत के विधान तथा फल को मुझे भी बताइये।"
स्त्रियों ने कहा, "हे ब्राह्मण देवता! यदि व्रत में उन्माद या प्रमाद अथवा विस्मरण, भक्ति हीनता या अनास्था करोगे तो यह व्रत निष्फल हो जायेगा। अतः इस व्रत को तुम्हें हम कैसे बता दें। ब्राह्मण बोला, "मैं ऐसा नहीं करूँगा।"
उसकी ऐसी बात सुनकर उन महिलाओं में से एक प्रौढ़ महिला ने ब्राह्मण को उस व्रत की विधि बता दी। उसने बताया श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के पहले रविवार को मौन धारण कर प्रातः उठें। शीतल जल से स्नान कर पान के पत्ते पर बारह परिधि वाला मंडल लिखना चाहिए। उसे लाल चन्दन से सूर्य नारायण के तुल्य गोलाकार लिखना चाहिए। उस मंडल में संज्ञा नाम वाली स्त्री सहित सूर्य का लाल चन्दन से पूजन करना चाहिए। घुटने जोड़कर, जमीन पर बैठकर सूर्य के बारह मंडलों पर अलग-अलग लाल चन्दन से युक्त लावा तथा जपा (ओडहुल) पुष्प से युक्त अर्घ्य को श्रद्धाभक्ति से सूर्यनारायण को दें। अर्घ्य को रक्ताक्षत, जपा पुष्प और उपचारों द्वारा युक्त करें। नारिकेल बीज और खाँड से युक्त सूर्य के मंत्रों को कहकर नैवेद्य दें।
सूर्य का बारह मंत्रों द्वारा स्तवन करें। बारह बार नमस्कार करें। बारह बार प्रदक्षिणा करें और छः सूतों को एक में मिलाकर उसमें छः ग्रन्थी लगावें। उस सूत्र को सूर्य नारायण को अर्पण कर अपने गले में पहन लें। बारह प्रकार के फल का बायना ब्राह्मण को दें। कुपात्र को इस व्रत की विधि नहीं बतानी चाहिए।
हे द्विज! इस व्रत के करने से निर्धन धनवान हो जाता है। निःसन्तान पुत्रवान हो जाता है। कोढ़ी का कोढ़ मिट जाता है। रोगी का रोग दूर हो जाता है। प्राणी जिस वस्तु की इच्छा करता है, वह उसको इस व्रत के प्रभाव से प्राप्त हो जाती है। श्रावण मास के महीने चार या पाँच जितने भी रविवार पड़ें सब रविवारों का व्रत करना चाहिए। व्रत के फल की प्राप्ति हेतु उद्यापन भी करना चाहिए। इस प्रकार रविवार का व्रत करने से कार्यसिद्धि होती है।
गरीब ब्राह्मण रविवार के व्रत की विधि प्राप्त कर अपने घर को लौट गया। घर आकर उसने अपनी दोनों पुत्रियों को भी रविवार व्रत की कथा एवं विधि से अवगत कराया। उस व्रत के सुनने और अर्पण तथा दर्शन मात्र से उसकी दोनों पुत्रियाँ सुन्दर बन गईं। उसी दिन से गरीब ब्राह्मण के घर लक्ष्मीजी निवास करने लगीं। अब वह ब्राह्मण भगवान की कृपा से धन कुबेर बन गया।
एक दिन वहाँ का राजा ब्राह्मण के घर के सामने से गुजर रहा था तो उसकी दृष्टि ब्राह्मण की रूपवती कन्याओं पर पड़ी। वह उनकी सुन्दरता को देखकर ठगा सा रह गया। राजा ने उन कन्याओं से विवाह करने का निश्चय कर महलों को लौट गया। राजा ने अपने पुरोहित को ब्राह्मण के यहाँ उसकी दोनों पुत्रियों से विवाह करने का सन्देश लेकर भेजा। ब्राह्मण ने राजा का प्रस्ताव स्वीकार कर अपनी दोनों पुत्रियों का विवाह राजा से कर दिया। राजमहल में जाकर दोनों कन्याओं ने रविवार का व्रत किया और वे पुत्र-पौत्रों से युक्त हो गईं।
हे सनत्कुमार! जिस व्रत के सुनने मात्र से सब आकांक्षाओं की पूर्ति हो जाती है तो इसके अनुष्ठान के फल का क्या कहना?
॥ इस प्रकार श्रीस्कन्दपुराण के अंतर्गत ईश्वर सनत्कुमार संवाद में श्रावण मास माहात्म्य में "कोटिलिंग महात्म्य एवं रविवार व्रत कथा महात्म्य" नामक पाँचवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥