भगवान शंकर ने ब्रह्मापुत्र से कहा, "हे ऋषिवर! अब मैं तुम्हें धारण-पारण व्रत के बारे में बताऊँगा।" पूर्व प्रतिपदा तिथि को पुण्याहवाचन करवाने के बाद मेरा व्रत धारण करना चाहिए। एक दिन धारण और दूसरे दिन उसका पारण करना चाहिये। धारण में उपवास तथा पारण में भोजन विहित है। मास की समाप्ति पर उद्यापन करना चाहिए। श्रावण मास की समाप्ति पर कीर्तन, पुण्याहावचन कराकर आचार्य तथा दूसरे ब्राह्मणों का वरण करना चाहिए। शंकर-पार्वती की सोने की प्रतिमा को घट के ऊपर स्थापित करना चाहिए। रात्रि में भक्तिपूर्वक शिवमहापुराण का श्रवण, कीर्तन आदि करके रात्रि जागरण करना चाहिए। प्रातःकाल हवन करना चाहिये। "त्र्यम्बकं यजामहे…" मंत्र से तिल और चावलों की आहुति देनी चाहिए। "वामदेवाय विदमहे महादेवाय धीमहि। तन्नो रूद्रः प्रचोदयात।" मंत्र से घृत और चावल की आहुति देनी चाहिए। "ॐ नमः शिवाय" मंत्र से खीर की आहुति देनी चाहिए। इसकी पूर्णाहुति देकर होम समाप्त करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और आचार्य का पूजन करना चाहिये। इस प्रकार व्रत को पूर्ण करने से ब्रह्म हत्या आदि पापों से मनुष्य मुक्त हो जाता है, इसमें लेशमात्र भी सन्देह नहीं है।
हे सनत्कुमार! अब तुम श्रावण मास में उपवास की विधि सुनो। श्रावण मास की प्रतिपदा तिथि को मनुष्यों एवं स्त्रियों को संयतात्मा एवं जितेन्द्रिय होकर व्रत का संकल्प करना चाहिए। अमावस्या के दिन लोगों को वृषभध्वज भगवान महादेव का षोड़शोपचार विधि से पूजन करना चाहिए। ब्राह्मणों को वस्त्र, अलंकार देकर उनका पूजन करना चाहिये। उन्हें भोजन कराकर दक्षिणा देकर हाथ जोड़कर विदा करना चाहिए।
इसी तरह मास उपवास का व्रत मुझे प्रीतिदायक है। एक लाख संख्या वाली रुद्रवर्ती विधि से करना चाहिए। इस विधि को हे सनत्कुमार ध्यानपूर्वक सुनो। यह सम्पूर्ण सिद्धियों को देनेवाली है। साधारण रुई की ग्यारह-ग्यारह बत्तियाँ निर्मित करें। यह बत्तियाँ "रुद्रबति" नाम से जानी जाती है। श्रावण मास के प्रथम दिन इस विधि से संकल्प करें। "श्रावण मास में देवों के देव महादेव हैं। मैं भक्ति पूर्वक गौरीश की एक लाख बत्तियों से आरती करूँगा।" यह संकल्प कर प्रतिदिन एक हजार बत्तियों द्वारा पूजन करना चाहिए। व्रत की समाप्ति पर इकहत्तर हजार बत्तियों से आरती करनी चाहिए या प्रतिदिन तीन हजार बत्तियों से आरती कर अन्तिम दिन तेरह हजार बत्तियों से आरती करनी चाहिये या एक ही दिन में एक लाख बत्तियों से आरती करनी चाहिए। यह बत्तियाँ मुझे सबसे अधिक प्रिय हैं। इनको शुद्ध घी से ही प्रज्ज्वलित करना चाहिये। इसके बाद सदाशिव का पूजन करके कथा सुननी चाहिये।
सनत्कुमार भगवान रुद्र से बोले, "हे महादेव! मुझे अब आप यह बताने का कष्ट करें कि इस व्रत का प्रभाव क्या है? इस व्रत को किसने किया है और इस व्रत के उद्यापन की विधि क्या है? ये सब बातें मुझसे विस्तारपूर्वक कहिये।"
भगवान शिव ब्रह्मापुत्र सनत्कुमार से बोले, "तुमने जो मुझसे पूछा है उसको मैं तुम्हें बताता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो। यह व्रत सब व्रतों में श्रेष्ठ और महान पुण्य प्रदान करने वाला है तथा सम्पूर्ण उपद्रवों को नाश करने वाला है। यह व्रत पुत्र, पौत्र तथा सौभाग्य को प्रदान करने वाला माना जाता है। सत्य तो यह है कि तीनों लोकों में रुद्रवर्ती जैसा दूसरा कोई भी व्रत नहीं है। इसके सम्बन्ध में मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूँ।"
क्षिप्रा नदी के किनारे उज्जयिनी नाम की एक सुन्दर नगरी है। उस नगर में सुगन्धा नाम की एक अत्यन्त सुन्दर वैश्या रहती थी। उस वैश्या ने कई युवा पुरुषों तथा ब्राह्मणों के धर्म भ्रष्ट किये। बार-बार बहुत से राजाओं तथा राजकुमारों को बिगाड़ा। इस प्रकार उसने अनेकों व्यक्तियों को बुरी तरह से लूटा और लूटने के बाद धक्के देकर घर से बाहर निकाल दिया। अब वे सम्मानित नागरिक शर्म के मारे किसी को अपना मुँह तक न दिखा सकते थे। उस सुगन्धा वैश्या के शरीर से निकली सुगन्धी एक कोस तक फैलती रहती थी। पृथ्वी पर उसके रूप लावण्य की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। वह गायन विद्या में छः राग तथा छत्तीस रागनियों में निपुण थी। नृत्य में वह रम्भा आदि देवांगनाओं को पीछे छोड़ चुकी थी।
एक बार वह वैश्या क्षिप्रा नदी के तट पर गई। वहाँ उसने सब ओर ऋषियों को देखा। कुछ ब्राह्मण स्नान कर रहे थे तो कुछ भगवान शिव या भगवान विष्णु की अर्चना कर रहे थे। उसने वहाँ ऋषि वशिष्ठ को बैठे देखा। उनके दर्शन मात्र के प्रभाव से उस वैश्या की बुद्धि परिवर्तित हो गई। उसका मन वैश्या के जीवन तथा विषयों से हट गया। वह वैश्या महर्षि वशिष्ठ के चरणों में गिरकर अपने पाप कर्मों के नाश का उपाय पूछने लगी। सुगन्धा वैश्या ने कहा, "प्रभु! मैंने आजतक बहुत पाप किये हैं। आप मुझे उन पापों से छुटकारा दिलाने का कोई उपाय बताइये।"
महर्षि वशिष्ठ उस वैश्या की बात सुनकर बोले, "तुम मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनो। तेरे पापों का नाश जिस पुण्य के करने से होगा वह सब उपाय तुम्हें मैं बताता हूँ। तू वाराणसी में जाकर रुद्रवर्ती नामक व्रत को कर। यह व्रत महान पुण्य देनेवाला तथा शिव शंकर की भक्ति में मन को लगाने वाला है। इस व्रत के करने से तुम्हारी सद्गति हो सकती है।"
महर्षि वशिष्ठ के वचन सुनकर वह सुगन्धा नामक वैश्या अपना खजाना नौकरों व मित्रों को लेकर वाराणसी चली गई। उसने महर्षि वशिष्ठ द्वारा बताये व्रत को विधि विधान सहित किया। जिसके फलस्वरूप वह वैश्या पंच भौतिक शरीर को त्यागकर भगवान शंकर के शरीर में विलीन हो गई। जो भी स्त्री इस व्रत को जिस इच्छा को लेकर करती है उसे वह अवश्य प्राप्त होती है।
हे सनत्कुमार! अब तुम माणिकवर्तियों का महात्म्य सुनो। माणिकवर्तियों का व्रत करने से स्त्री मेरे अर्धासन की भागीदार बन जाती है। वह स्त्री महाप्रलयान्त तक मेरी प्रिया होकर निवास करती है। अब मैं तुम्हें इस व्रत की पूर्ति के लिए इसकी व्रतोद्यापन विधि बताता हूँ।
इस व्रत को करने वाली स्त्री पार्वती सहित शंकर की प्रतिमा स्थापित करे। शिव पार्वती की प्रतिमा स्वर्ण की बनी होनी चाहिए तथा वृषभ की प्रतिमा चाँदी की बनी होनी चाहिए। यथाविधि पूजन करके रात्रि जागरण करे। प्रातःकाल नदी में जाकर स्नान करे। भक्ति पूर्वक आचार्य का वरण करे तथा ग्यारह ब्राह्मणों के द्वारा घी, पायस एवं बेल-पत्रों से हवन कराना चाहिए अथवा रुद्रसूक्त, रुद्रगायत्री या मूल मंत्र द्वारा हवन कराना चाहिये। पूर्णाहुति कर आचार्य आदि की पूजा करके ग्यारह ब्राह्मणों को जोड़े सहित भोजन कराना चाहिए। इस प्रकार जो भी स्त्री व्रत पूरा करती है वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाती है। स्थापित सामग्री, घट, शिव पार्वती प्रतिमा आदि आचार्य को समर्पित करनी चाहिये। इस व्रत को करनेवाली स्त्री एवं उसके पति को एक हजार अश्वमेघ यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है।
॥ इस प्रकार श्रीस्कन्दपुराण के अंतर्गत ईश्वर सनत्कुमार संवाद में श्रावण मास माहात्म्य में "धारण-पारण व्रत" नामक चौथा अध्याय पूर्ण हुआ ॥