देवी दुर्गा जगत-जननी, अर्थात सम्पूर्ण सृष्टि की माता हैं। हिन्दु धर्म में देवी दुर्गा का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। वर्ष में नवरात्रि सहित विभिन्न प्रमुख अवसरों पर दुर्गा माँ की पूजा-अर्चना की जाती है। देवी दुर्गा, हिन्दु धर्म की सर्वाधिक लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण देवियों में से एक हैं। देवी दुर्गा ने विभिन्न अवसरों पर सृष्टि के कल्याण हेतु नाना प्रकार के रूप धारण कर राक्षसों का विनाश किया है। देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना शक्ति, साहस एवं पराक्रम की प्राप्ति होती है। देवी माँ की कृपा से जीवन में आने वाले समस्त प्रकार के संकट नष्ट हो जाते हैं। प्रत्येक माह की अष्टमी एवं नवमी तिथि को श्री दुर्गा होम करने से देवी माँ मान की विशेष कृपा की प्राप्ति होती है।
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये अग्नि में एक बूँद घी डालें तथा यह कल्पना करें कि अग्नि के माध्यम से आप अपनी सम्पूर्ण चेतना प्रजापति को समर्पित कर रहे हैं।
ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदम् प्रजापतये न मम।
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये अग्नि में एक बूँद घी डालें तथा यह कल्पना करें कि अग्नि के माध्यम से आप अपनी प्रेरित दृष्टिकोण की क्षमता इन्द्र को समर्पित कर रहे हैं।
ॐ इन्द्राय स्वाहा, इदम् इन्द्रयै न मम।
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये अग्नि में एक बूँद घी डालें तथा यह कल्पना करें कि अग्नि के माध्यम से आप अपनी तार्किक एवं सुव्यवस्थित वैचारिक क्षमता अग्निदेव को समर्पित कर रहे हैं।
ॐ अग्नये स्वाहा, इदं अग्नये न मम।
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये अग्नि में एक बूँद घी डालें तथा यह कल्पना करें कि आप अपनी भावना एवं अन्तरज्ञान अग्नि के माध्यम से सोमदेव को समर्पित कर रहे हैं।
ॐ सोमाय स्वाहा, इदं सोमाय न मम।
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये अग्नि में एक बूँद घी डालें तथा यह कल्पना करें कि आप अपनी शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक सत्ता को अग्नि के माध्यम से प्रजापति को समर्पित कर रहे हैं।
ॐ भूर्भुवस्सुवः स्वाहा।
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये अग्नि में आठ बार घी डालें तथा यह कल्पना करें कि आप अपनी योजना बनाने तथा बाधाओं को पार करने की योग्यता अग्नि के माध्यम से गणेश जी को समर्पित कर रहे हैं।
ॐ गं गणपतये नमः स्वाहा।
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये अग्नि में एक बूँद घी डालें तथा यह कल्पना करें कि आप अपनी दृण रहने एवं समस्याओं से निपटने की योग्यता अग्नि के माध्यम से वरुण देव को समर्पित कर रहे हैं।
ॐ वं वरुणाय नमः स्वाहा।
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये कल्पना करें कि भगवान् गणपति हवन की दिव्य अग्नि में प्रवेश करके आपकी आहुतियाँ स्वीकार कर रहे हैं।
अत्र आगच्छ। आवाहिता भव।
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये अग्नि में पिसा हुआ चन्दन अर्पित करें।
ॐ लं पृथिव्यात्मिकायै नमः
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये हवन में पुष्प अथवा सूखे हुये पुष्पों का चूर्ण अर्पित करें।
ॐ हं आकाशात्मिकायै नमः
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये एक धूपबत्ती प्रज्वलित करके हवनकुण्ड के समीप रखें।
ॐ यं वाय्वात्मिकायै नमः
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये हवन कुण्ड को दीपक दिखायें।
ॐ रं अग्न्यात्मिकायै नमः
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये किसी फल का दुकड़ा, किशमिश अथवा बिना झूठा भोजन हवन में अर्पित करें।
ॐ वं जलात्मिकायै नमः
निम्नलिखित तीन मन्त्रों में से किसी एक का उच्चारण करते हुये यज्ञ की अग्नि में घी अर्पित करें तथा यह कल्पना करें कि देवी दुर्गा उसे स्वीकार कर रही हैं।
ॐ दुं दुर्गायै नमः स्वाहा।
ॐ श्रीं ह्रीं दुं दुर्गायै नमः स्वाहा।
ॐ दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै। ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रा सततं नमः॥ स्वाहा।
आप इस प्रक्रिया को जितनी बार चाहें कर सकते हैं। यदि आपको देवी दुर्गा माँ का कोई अन्य प्रिय मन्त्र ज्ञात हो तो आप उससे भी यह क्रिया कर सकते हैं। यदि आप दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं तो आप समस्त 700 श्लोकों का हवन किसी आचार्य की देखरेख में कर सकते हैं। अथवा आप पंचम अध्याय के श्लोक संख्या 9 से श्लोक संख्या 80 के बीच देवताओं द्वारा देवी की स्तुति का भी हवन कर सकते हैं।
शीघ्रता न करें एवं यह कल्पना करें कि, देवी भगवती अग्नि में विराजमान हैं तथा आपके द्वारा दी गयी आहुतियों एवं मन्त्रों को स्वीकार कर रही हैं। अग्नि से अपनी ओर आती उनकी अनुपम कृपा एवं दिव्य ऊर्जा का अनुभव करें।
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये अग्नि में एक बूँद घी डालें तथा यह कल्पना करें कि अग्नि के माध्यम से आप अपनी शारीरिक अनभूति अग्निदेव को समर्पित कर रहे हैं।
ॐ भूः अग्नये स्वाहा।
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये अग्नि में एक बूँद घी डालें तथा यह कल्पना करें कि अग्नि के माध्यम से आप अपनी मानसिक अनभूति वायु देव को समर्पित कर रहे हैं।
ॐ भुवः वायवे स्वाहा।
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये अग्नि में एक बूँद घी डालें तथा यह कल्पना करें कि अग्नि के माध्यम से आप अपनी आध्यात्मिक अनभूति सूर्य देव को समर्पित कर रहे हैं।
ॐ स्वः सूर्याय स्वाहा।
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये अग्नि में एक बूँद घी डालें तथा यह कल्पना करें कि आपके भीतर जो भी शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक निर्माण हुआ है, हवन के माध्यम से प्रजापति को समर्पित कर रहे हैं।
ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा।
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये अग्नि में एक बूँद घी डालें तथा यह कल्पना करें कि आपके भीतर जो भी शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक अनभूति निरन्तर स्थिर है, हवन के माध्यम से भगवान् विष्णु को समर्पित कर रहे हैं।
ॐ विष्णवे स्वाहा।
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये अग्नि में एक बूँद घी डालें तथा यह कल्पना करें कि आपके भीतर जो भी शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक अनभूति नष्ट हो रही है, हवन के माध्यम से भगवान् रूद्र को समर्पित कर रहे हैं।
ॐ रुद्राय स्वाहा।
6 किशमिश, 6 फल अथवा 6 फल के टुकड़े लें तथा निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये देवता के उन पार्षदों को अर्पित करें जो अग्नि के माध्यम से आहुति स्वीकार नहीं करते अपितु गन्ध के रूप में भोजन करते हैं। पूजनोपरान्त आप इन टुकड़ों को झाड़ियों में अथवा पशु-पक्षियों को दे सकते हैं।
ॐ पार्ष्देभ्यो नमः।
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये एक बड़ा सा गोला का टुकड़ा, बड़ी लकड़ी अथवा थोड़ी अधिक मात्रा में घी हवन में अर्पित करें तथा यह कल्पना करें कि आप अपना सम्पूर्ण अस्तित्व माँ दुर्गा को समर्पित कर रहे हैं।
ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः स्वाहा।
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये हवन में घी अर्पित करें तथा यह कल्पना करें कि सप्तजिह्वा वाली अग्नि प्रसन्न हुयी।
ॐ अग्नवे सप्तवते स्वाहा।
निम्नलिखित मन्त्र अथवा किसी अन्य मन्त्र द्वारा यथाशक्ति ध्यान करें।
ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः।
सिंहस्था शशिशेखरा मरकतप्रख्ययैश्चतुर्भिर्भूयै।
शङ्खं चक्रधनुःशरांश्चर दधती नेत्रैस्त्रिभिः शोभिता।
आमुक्ताङ्गदहारकङ्कणरणत्काञ्चीरणन्नूपुरा।
दुर्गा दुर्गतिहारिणी भवतु नो रत्नोल्लसत्कुण्डला॥
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।
ॐ श्रीदुर्गायै नमः।
मन्त्र का अर्थ- जो सिंह की पीठ पर विराजमान हैं। जिनके मस्तक पर चन्द्रमा का मकुट शुशोभित है। जी मरकत मणि के सामान कान्ति वाली अपनी भुजाओं में शङ्ख, चक्र, धनुष तथा बाण धारण करती हैं। जो त्रिनेत्र से शोभायमान हैं। जिनके विभिन्न शरीर के विभिन्न अङ्ग बाजूबन्द, हार, कँगन, मधुर ध्वनि करती करधनी तथा कर्णप्रिय संगीत उत्पन्न करते हुये नुपरों से अलङ्कृत हैं। जिनके कर्ण रत्नजणित कुण्डलों से दैदीप्यमान हैं। वह देवी दुर्गा हमारी दुर्गति एवं दुर्भाग्य नष्ट करने की कृपा करें।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
अन्त में निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये कल्पना करें कि आपको एवं अन्य सभी को शान्ति प्राप्त हो।
नोट: यह एक संक्षिप्त विधि है जिसका प्रयोग आप स्वयं अपने घर पर कर सकते हैं। किसी योग्य विद्वान के सानिध्य में किया गया हवन और पूजन ज्यादा लाभकारी होता है।