
टिप्पणी: सभी समय १२-घण्टा प्रारूप में लँकेस्टर, संयुक्त राज्य अमेरिका के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय जो आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं, आगामि दिन से प्रत्यय कर दर्शाये गए हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।
पूर्णिमा श्राद्ध भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है। किन्तु यह ध्यान देना आवश्यक है कि पूर्णिमा तिथि पर मृत्यु प्राप्त करने वालों के लिये महालय श्राद्ध भी अमावस्या श्राद्ध तिथि पर किया जाता है। हालाँकि, भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध पितृ पक्ष से एक दिन पहले पड़ता है, किन्तु यह पितृ पक्ष का भाग नहीं है। सामान्यतः पितृ पक्ष, भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध के अगले दिन से आरम्भ होता है।
भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध, जैसे कि पितृ पक्ष श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध होते हैं। इन श्राद्धों को सम्पन्न करने के लिये कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ मुहूर्त माने गये हैं। अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध सम्बन्धी अनुष्ठान सम्पन्न कर लेने चाहिये। श्राद्ध के अन्त में तर्पण किया जाता है।
हेमाद्रि एवं मार्कण्डेयपुराण के अनुसार, भाद्रपद पूर्णिमा के दिन प्रपितामह से आगे तीन पितरों के निमित्त श्राद्ध करना चाहिये। सूर्यदेव जिस समय कन्या राशि में स्थित हों तब नान्दीमुख पितरों का श्राद्ध प्रतिवर्ष पूर्णिमा के दिन करना चाहिये।
ब्रह्मपुराण के अनुसार पिता, पितामह एवं प्रपितामह इन तीन पितरों को अश्वमुख कहा जाता है तथा इनसे पूर्व सुखी एवं प्रजा वाले तीन पितरों को नान्दीमुख कहते हैं। इस दिन मातामहों का श्राद्ध भी करना चाहिये। निर्णयदीप में महर्षि गर्गाचार्य ने कहा है कि - "मात्र एक भाद्रपद की पूर्णिमा के अतिरिक्त अन्य सभी पूर्णिमा तिथियों पर पिण्डदान का निषेध है, क्योंकि इस पूर्णिमा को अमावस्या के समान माना गया है।"
पूर्णिमा श्राद्ध को श्राद्धि पूर्णिमा तथा प्रोष्ठपदी पूर्णिमा श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।