हिन्दु धर्म में, उपवास को व्रत अथवा व्रतम् के नाम से जाना जाता है। धर्मग्रन्थों में सुखी एवं शान्तिपूर्ण जीवन हेतु अनेक प्रकार के उपवास सुझाये गये हैं। वर्तमान समय में, हिन्दु धर्म के अनुयायियों के मध्य, एकादशी, प्रदोष तथा संकष्टी अधिक प्रचलित एवं लोकप्रिय उपवास हैं।
एकादशी उपवास, भगवान विष्णु को समर्पित है। भगवान विष्णु जीवन के संरक्षक हैं तथा धर्म ग्रन्थों में एकादशी उपवास का निर्देश दिया गया है। अधिकांश लोग दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य तथा जन्म एवं मृत्यु के चक्र से मुक्त होने, अर्थात मोक्ष प्राप्त करने हेतु एकादशी व्रत का पालन करते हैं। प्रदोष उपवास, भगवान शिव को समर्पित है। धर्म ग्रन्थों में प्रदोष उपवास करने का सुझाव दिया जाता है तथा अधिकांश लोग एक अनुकूल जीवन साथी, वैवाहिक आनन्द, यौन सन्तुष्टि तथा जीवन में पूर्णता प्राप्त करने हेतु प्रदोष व्रत का पालन करते हैं। संकष्टी उपवास, भगवान गणेश को समर्पित है। संकष्टी उपवास जीवन में आ रही विघ्न-बाधाओं से मुक्ति प्राप्त करने हेतु सुझाया जाता है तथा अधिकांश भक्तगण कठिन कार्य को बिना किसी विघ्न-बाधा के सफलतापूर्वक पूर्ण करने हेतु संकष्टी व्रत करते हैं।
हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार, एकादशी व्रत एवं प्रदोष व्रत माह में दो बार किया जाता है, जबकि संकष्टी व्रत प्रति माह एक बार ही किया जाता है।
अनेक भक्तगण एकादशी व्रत के साथ-साथ प्रदोष व्रत भी करते हैं। सामान्यतः एकादशी एवं प्रदोष व्रत के मध्य एक दिन का अन्तर होता है। यद्यपि, अनेक बार इन्हें निरन्तर दो दिन मनाया जाता है। अनेक भक्त जानना चाहते हैं कि, यदि एकादशी के अगले दिन प्रदोष व्रत भी पड़ रहा हो तो एकादशी व्रत का पारण कैसे करें। ऐसी स्थिति में केवल जल से प्रतीकात्मक एकादशी पारण करने तथा वास्तविक व्रत पारण किये बिना ही प्रदोष व्रत करने का सुझाव दिया जाता है। यद्यपि, यह कठिन प्रतीत होता है, किन्तु हिन्दु धर्म में निरन्तर दो दिन व्रत करना अति सामान्य है।