टिप्पणी: सभी समय १२-घण्टा प्रारूप में Penrith, ब्रिटेन के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय जो आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं, आगामि दिन से प्रत्यय कर दर्शाये गए हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।
हिन्दु पञ्चाङ्ग के अनुसार, मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को माँ त्रिपुर भैरवी की जयन्ती मनायी जाती है। भैरवी दस महाविद्या देवियों में से पाँचवी देवी हैं। देवी भैरवी रूद्र भैरवनाथ की शक्ति हैं। देवी का यह भैरवी स्वरूप अत्यन्त वीभत्स्य एवं भयङ्कर है, जो देवी काली के समान है। देवी भैरवी, भगवान भैरव की अर्धांगिनी हैं, जो भगवान शिव का विनाशकारी रौद्र रूप हैं। देवी भैरवी विभिन्न रूपों में पूजी जाती हैं, जिन्हें रुद्र भैरवी, भद्र भैरवी, चैतन्य भैरवी, नित्य भैरवी, कौलेश भैरवी, श्मशान भैरवी, सम्पत प्रदा भैरवी, त्रिपुर भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी, भुवनेश्वर भैरवी, सम्पदाप्रद भैरवी, कालेश्वरी भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, शतकुटी भैरवी तथा नित्या भैरवी कहा जाता है।
दुर्गा सप्तशती में भैरवी को दैत्यों का सँहार करने वाली चण्डी के नाम से वर्णित किया गया है। माता भैरवी की कृपा से व्यक्ति आसुरी शक्तियों एवं शारीरिक दुर्बलताओं से मुक्त हो जाता है। सुयोग्य वर की प्राप्ति, प्रेम विवाह एवं शीघ्र विवाह हेतु भी देवी भैरवी की साधना करने का सुझाव दिया जाता है।
नारद पञ्चरात्र के अनुसार, एक समय में महाकाली के मन में पुनः गौर वर्ण प्राप्त करने का विचार उत्पन्न हुआ। जिस पर देवी अन्तर्धान हो जाती हैं। जब भगवान शिव काली को अपने समक्ष नहीं पाते तो व्याकुल होकर देवऋषि नारद से देवी के विषय में पूछते हैं। नारद जी भगवान शिव से कहते हैं कि, सुमेरु पर्वत के उत्तर में देवी का प्राकट्य स्थल है। महादेव के आदेशानुसार देवर्षि नारद, देवी को खोजने हेतु निकलते हैं। नारद सुमेरु के उत्तर में पहुँचकर देवी से महादेव के साथ विवाह का प्रस्ताव रखते हैं। इस प्रस्ताव पर देवी क्रुद्ध होकर अपनी देह से भैरवी विग्रह प्रकट करती हैं।
अतः महाकाली के छाया विग्रह से ही त्रिपुर भैरवी का प्राकट्य हुआ है। रुद्रयामल तन्त्र शास्त्र के अनुसार सभी दस महाविद्या शिव की शक्तियाँ हैं तथा देवी भागवत के अनुसार पाँचवी महाविद्या त्रिपुर भैरवी ही महाकाली की उग्र रूप हैं। इनके कई भेद इस प्रकार हैं, त्रिपुर भैरवी, चैतन्य, सिद्ध, भुवनेश्वर, सम्पदाप्रद, कमलेश्वरी, कौलेश्वर, कामेश्वरी, नित्या, रुद्र, भद्र एवं षटकुटा आदि। त्रिपुर भैरवी ऊर्ध्व अन्वय की देवी हैं।