देवी सरस्वती को ज्ञान एवं कला की देवी माना जाता है। देवी सरस्वती की पूजा दीवाली पूजा, नवरात्रि सरस्वती पूजा और वसन्त पञ्चमी के दौरान की जाती है। गुजरात में, दीवाली के समय सरस्वती पूजा को शारदा पूजा एवं चोपड़ा पूजा के नाम से भी जाना जाता है।
सरस्वती पूजा प्रारम्भ करने के लिये, पूजा स्थल पर बही-खाते य अन्य पुस्तकें रखी जाती हैं। रोचन अथवा लाल चन्दन के मिश्रण से बही-खातों पर एक स्वस्तिक चिह्न बनाना चाहिये। बही-खातों पर स्वस्तिक चिह्न बनाने के पश्चात् सरस्वती पूजन प्रारम्भ कर सकते हैं।
पूजा के प्रारम्भ में भगवती सरस्वती का ध्यान करना चाहिये। देवी-सरस्वती का प्रतिनिधित्व करने वाले बही-खाते या पुस्तकों के सामने ध्यान किया जाना चाहिये। भगवती सरस्वती का ध्यान करते हुये निम्नलिखित मन्त्र का जाप करना चाहिये।
या कुन्देन्दु-तुषार-हार-धवला या शुभ्र-वस्त्रावृता
या वीणा-वरदण्ड-मण्डित-करा या श्वेत-पद्मासना।
या ब्रह्माऽच्युत-शङ्कर-प्रभृतिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
मन्त्र अर्थ - जो कुन्द-पुष्प और हिम-माला के समान उज्जवल-वर्णा हैं, जो उज्जवल वस्त्र-धारिणी हैं, जो सुन्दर वीणा-दण्ड से सुशोभित कर-कमलोंवाली हैं और जो सदा ब्रह्मा-विष्णु-महेश आदि देवताओं द्वारा पूजनीय हैं, वे जड़ता को निर्मूल करने वाली भगवती सरस्वती मेरी रक्षा करें।
भगवती सरस्वती का ध्यान करने के उपरान्त बही-खाते या पुस्तकों आदि के सम्मुख आवाहन-मुद्रा प्रदर्शित करते हुये, निम्नलिखित मन्त्र द्वारा उनका आवाहन करें।
आगच्छ देवि देवेशि! तेजोमयि सरस्वति!
क्रियमाणां मया पूजां गृहाण सुर-वन्दिते!
॥ श्रीसरस्वती-देवीम् आवाहयामि॥
मन्त्र अर्थ - हे देवताओं की ईश्वरी! तेज-मयी हे देवि, सरस्वति! हे देव-वन्दिते! आइये, मेरे द्वारा की जाने वाली पूजा को स्वीकार करें।
॥ मै भगवती सरस्वती का आवाहन करता हूँ ॥
आवाहन करने के उपरान्त निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये भगवती सरस्वती के आसन के लिये पाँच पुष्प अञ्जलि में लेकर अपने सामने, बही-खाते या पुस्तकों आदि के निकट छोड़े।
नाना-रत्न-समायुक्तं कार्तस्वर-विभूषितम्।
आसनं देवि देवेशि! प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम्॥
॥ श्रीसरस्वती-देव्यै आसनार्थे पञ्च-पुष्पाणि समर्पयामि॥
मन्त्र अर्थ - हे देवताओं की ईश्वरी! विविध प्रकार के रत्नों से युक्त स्वर्ण-सज्जित आसन को प्रसन्नता हेतु ग्रहण करें।
॥ भगवती सरस्वती के आसन के लिये मैं पाँच पुष्प अर्पित करता हूँ ॥
तदुपरान्त 'चन्दन-अक्षत-पुष्प-धूप-दीप-नैवेद्य' से भगवती सरस्वती का पूजन निम्नलिखित मन्त्रों द्वारा करें।
ॐ श्रीसरस्वती-देव्यै नमः पादयोः पाद्यं समर्पयामि।
ॐ श्रीसरस्वती-देव्यै नमः शिरसि अर्घ्यं समर्पयामि।
ॐ श्रीसरस्वती-देव्यै नमः गन्धाक्षतान् समर्पयामि।
ॐ श्रीसरस्वती-देव्यै नमः पुष्पं समर्पयामि।
ॐ श्रीसरस्वती-देव्यै नमः धूपम् आघ्रापयामि।
ॐ श्रीसरस्वती-देव्यै नमः दीपं दर्शयामि।
ॐ श्रीसरस्वती-देव्यै नमः नैवेद्यं निवेदयामि।
ॐ श्रीसरस्वती-देव्यै नमः आचमनीयं समर्पयामि।
ॐ श्रीसरस्वती-देव्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि।
इस प्रकार पूजन करने के उपरान्त बायें हाथ में गन्ध, अक्षत, पुष्प लेकर दाहिने हाथ द्वारा निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये 'बही-खाते' या 'पुस्तकों' आदि पर छोड़े।
ॐ श्रीसरस्वत्यै नमः। अनेन पूजनेन श्रीसरस्वती देवी प्रीयताम्। नमो नमः।
मन्त्र अर्थ - श्रीसरस्वती को नमस्कार। इस पूजन से श्रीसरस्वती देवी प्रसन्न हों, उन्हें बारम्बार नमस्कार।