देवी सीता, जिन्हें सामान्यतः माता सीता कहा जाता है, जो प्रमुख हिन्दु धर्म ग्रन्थ एवं महाकाव्य श्री रामचरितमानस की नायिका हैं। धर्मग्रन्थों के अनुसार, जिस समय भगवान श्री हरि विष्णु जी ने त्रेतायुग में भगवान श्री राम के रूप में अवतार धारण किया था, उसी समय देवी लक्ष्मी भी देवी सीता के रूप में श्री राम जी की धर्मपत्नी का कर्तव्य निर्वहन करने हेतु भूलोक पर अवतरित हुयीं थीं। राजा जनक की पुत्री होने के कारण देवी सीता को जानकी, जनकात्मजा एवं जनकसुता आदि नामों से भी जाना जाता है।
रामायण में प्राप्त वर्णन के अनुसार, एक समय मिथिला में भीषण अकाल पड़ा था। अकाल से प्रजा की रक्षा करने हेतु कोई उपाय पूछने पर राजऋषियों ने राजा जनक को यज्ञ आदि वैदिक अनुष्ठान सम्पन्न कराने एवं स्वयं खेतों में हल चलाने का सुझाव दिया। राजा जनक हवन एवं यज्ञ हेतु भूमि जोत रहे थे, उसी समय हल भूमि के अन्दर एक स्वर्ण मञ्जूषा (सोने की पेटी) में अटक गया।
राजा जनक ने ज्यों ही उस स्वर्ण मञ्जूषा को जिज्ञासावश खोलकर देखा, त्यों ही उसमे एक सुन्दर कन्या का दर्शन हुआ। महर्षि याज्ञवल्क्य के द्वारा निर्देश प्राप्त होने पर देवी सुनयना ने देवी सीता का लालन-पालन किया। भूमि से उत्पन्न होने के कारण, इन्हें भूमिपुत्री अथवा भूसुता के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। हिन्दु पञ्चाङ्ग के अनुसार, सीता जी का जन्म वैशाख शुक्ल नवमी को मिथिलानरेश राजा जनक के यहाँ वर्तमान समय के सीतामढी (बिहार) में हुआ था।
अद्भुत रामायण में भी देवी सीता के जन्म की कथा का वर्णन प्राप्त होता है। अद्भुत रामायण में प्राप्त वर्णन के अनुसार, गृत्समद नाम के एक महान ऋषि थे। गृत्समद ऋषि देवी लक्ष्मी को अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त करने की कामना से कठिन तप कर रहे थे। एक समय ऋषि की अनुपस्थिति में दैत्यराज रावण ने उनके आश्रम पर आक्रमण कर दिया तथा वहाँ उपस्थित समस्त ऋषियों का वध करके उनके रक्त को एक कलश में भर लिया। तदोपरान्त उस रक्त से भरे कलश को रावण लङ्का लेकर आया और अपने महल में उसे छुपा दिया।
एक दिन रावण की पत्नी मन्दोदरी ने उस कलश को जिज्ञासावश खोला तथा उसमें भरे रक्त का पान कर लिया। रक्तपान करने के फलस्वरूप मन्दोदरी गर्भवती हो गयी तथा एक सुन्दर कन्या को जन्म दिया। रावण के भय के कारण मन्दोदरी ने उस नवजात कन्या को कलश में ही रखकर मिथिला राज्य की भूमि में छुपा दिया। कथानुसार वही कन्या सीता के रूप में राजा जनक को प्राप्त हुयी।
राजा शीलध्वज जनक देवी सीता के पिता एवं देवी सुनयना उनकी माता हैं। देवी सीता की तीन अन्य बहनें हैं, जिनके नाम उर्मिला, माण्डवी एवं श्रुतिकीर्ति हैं। देवी सीता का विवाह भगवान श्री राम के साथ हुआ था। सीता माता के दो पुत्र हैं, जो समस्त संसार में लव एवं कुश के नाम से विख्यात हैं। सीता माता के पिता राजा जनक ने यह प्रतिज्ञा की थी कि जो भी वीर पुरुष भगवान शिव के महान धनुष पर प्रत्यञ्चा चढ़ायेगा, उसी के साथ देवी सीता का विवाह होगा। अनेक राजाओं द्वारा धनुष प्रत्यञ्चा चढ़ाना तो दूर उसे उठाने के भी प्रयास सफल न हो सके। तदोपरान्त भगवान श्री राम जी ने उस धनुष को भङ्ग किया तथा देवी सीता ने उनका वरण किया।
श्री राम जी से सीता जी का विवाह निश्चित होने के पश्चात सीताजी की अन्य बहनों का विवाह भी श्री राम जी के अन्य भ्राताओं के साथ निश्चित कर दिया गया, जिसमें क्रमशः उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से, माण्डवी का भरत से तथा श्रुतकीर्ति का शत्रुघ्न से निर्धारित हुआ।
देवी सीता का चित्रण अत्यन्त शान्त, सौम्य एवं सरल भावभँगिमा के साथ किया जाता है। देवी सीता नाना प्रकार के स्वर्णाभूषणों से सुसज्जित विराजमान रहती हैं। देवी का एक हाथ वरद मुद्रा एवं दूसरा अभय मुद्रा में स्थित रहता है। देवी सीता का रूप, रँग एवं वेशभूषा देवी लक्ष्मी के समान ही है। तथा वे भगवान श्रीरामचन्द्र जी के साथ दिव्य सिंहासन पर विराजमान रहती हैं।
सामान्य मन्त्र -
श्री जानकी रामाभ्यां नमः।
मूल मन्त्र -
श्री सीतायै नम:।
देवी सीता गायत्री मन्त्र -
ॐ जनकाय विद्महे राम प्रियाय धीमहि, तन्नो सीता प्रचोदयात्।