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द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग | 12 ज्योतिर्लिङ्ग | भगवान शिव के बारह रूप

DeepakDeepak

द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग

द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग - भगवान शिव के 12 रूप

भगवान शिव हिन्दु धर्म में पूजे जाने वाले सर्वाधिक लोकप्रिय एवं प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वह हिन्दु धर्म के तीन प्रमुख देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में से एक हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से त्रिमूर्ति के रूप में जाना जाता है। भगवान शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं, जिनकी आराधना लिङ्ग के रूप में की जाती है। ज्योतिर्लिङ्ग को साक्षात् भगवान शिव का ही प्रतिरूप माना जाता है तथा यह दिव्य अलौकिक दैवीय ऊर्जा से परिपूर्ण होता है।

शिव पुराण में प्राप्त वर्णन के अनुसार, भगवान शिव पृथ्वीलोक पर बारह भिन्न-भिन्न स्थानों पर स्वयं ज्योतिर्लिङ्गों के रूप में स्थित हैं, भगवान भोलेनाथ शिव के इन बारह दिव्य ज्योतिर्लिङ्ग स्वरूपों को सँयुक्त रूप से द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग के रूप में जाना जाता है। यह उल्लेखनीय है कि, शिवलिङ्ग वह होते हैं, जिन्हें किसी देव, ऋषि एवं मनुष्य आदि द्वारा स्थापित किया जाता है। किन्तु जब स्वयं भगवान शिव किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति हेतु अवतरित होकर लिङ्ग रूप में अवस्थित हो जाते हैं, तब भोलेनाथ का इस दिव्य तेजोमयी स्वरूप को ज्योतिर्लिङ्ग के रूप में पूजा जाता है। अर्थात शिवलिङ्ग तो अनेक हो सकते हैं, परन्तु ज्योतिर्लिङ्ग मात्र बारह स्थानों पर ही स्थित हैं, जिन्हें द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग कहा जाता है। शास्त्रों में, देवलिङ्ग, असुरलिङ्ग, पुराण लिङ्ग तथा बाणलिङ्ग आदि का नाना प्रकार के लिङ्गों का वर्णन प्राप्त होता है।

ज्योतिर्लिङ्ग के प्राकट्य के सन्दर्भ में शिवमहापुराण में प्रसङ्ग आता है कि, एक समय भगवान ब्रह्मा एवं भगवान विष्णु के मध्य किसी विषय पर विवाद हो गया, जिसके निवारण हेतु वह दोनों भगवान शिव के समक्ष उपस्थित हुये तथा उनसे प्रार्थना की, जिसके फलस्वरूप भगवान शिव महान अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हो गये, तथा दोनों देवताओं से उस अग्निस्तम्भ की सीमा ज्ञात करने को कहा, अन्त में दोनों के असफल होने पर विवाद का निवारण हो गया। भगवान भोलेनाथ शिव के इसी निराकर ज्योतिर्मय अग्नि स्तम्भ स्वरूप को ज्योतिर्लिङ्ग के रूप में जाना जाता है।

इसी प्रकार पृथ्वीलोक पर मानव कल्याण एवं जगत् के उद्धार हेतु भगवान शिव शम्भु ने बारह भिन्न-भिन्न रूपों में अवतार धारण किया है। यह बारह रूप विभिन्न स्थानों पर ज्योतिर्लिङ्ग के रूप में स्थित हैं।

श्री शिव महापुराण में प्राप्त वर्णन के अनुसार, सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल पर मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में महाकाल, औंकार में अमरेश्वर, हिमालय पर केदार, डाकिनी में भीमाशङ्कर, काशी में विश्वनाथ, गौतमी के तट पर त्रयम्बकेश्वर, चिताभूमि में वैद्यनाथ, दारुक वन में नागेश्वर, सेतुबन्ध पर रामेश्वर एवं शिवालय में घुश्मेश्वर आदि द्वादश ज्योतिर्लिङ्गों के रूप में स्वयं कैलाशपति भगवान शिव ही भूलोक पर स्थित हैं। इन द्वादश ज्योतिर्लिङ्गों का नित्य प्रतिदिन स्पर्श, दर्शन अथवा स्मरण मात्र से व्यक्ति को सुख- समृद्धि एवं आनन्द की प्राप्ति होती है। द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग का पूजन करने से समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

द्वादश ज्योतिर्लिङ्गों के स्थान, प्राकट्य, स्वरूप एवं माहात्म्य ज्ञात करने हेतु सम्बन्धित ज्योतिर्लिङ्ग के पृष्ठों का अवलोकन करें।

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