श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिङ्ग, द्वादश ज्योतिर्लिङ्गों में से पञ्चम ज्योतिर्लिङ्ग हैं। श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिङ्ग, हिमालय पर्वत के केदार नामक शृङ्ग पर मन्दाकिनी नदी के तट पर विरजामन हैं। यह स्थान हरिद्वार से 150 मील एवं ऋषिकेश से 132 मील दूर उत्तराञ्चल (वर्तमान में उत्तराखण्ड) राज्य में स्थित है।
भगवान केदारनाथ का मन्दिर कत्यूरी शैली में निर्मित है। हिन्दु धर्मग्रन्थों में प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह ज्ञात होता है कि इस अद्भुत-अलौकिक मन्दिर का निर्माण महाभारतकालीन पाण्डवों के पौत्र महाराजा जन्मेजय द्वारा करवाया गया था। हालाँकि, समय-समय पर इस दैवीय मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया जाता रहा है। श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिङ्ग को केदारेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग के नाम से भी जाना जाता है।
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग की उत्पत्ति कथा का वर्णन करने के उपरान्त सूत जी, श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिङ्ग के आविर्भाव की कथा का वर्णन करते हुये कहते हैं कि, भगवान हरि विष्णु ने सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण हेतु समय-समय पर विभिन्न अवतार धारण किये हैं। भगवान विष्णु के उन्हीं 24 अवतारों में नर-नारायण अवतार भी सम्मिलित हैं। नर-नारायण के हाथों में हंस, चरणों में चक्र एवं वक्षःस्थल में श्रीवत्स के चिन्ह अङ्कित थे। भगवान श्री विष्णु ने, दम्भोद्भव नामक एक अत्यन्त शक्तिशाली दैत्य के संहार हेतु यह अवतार धारण किया था।
नर-नारायण नामक दो भ्राताओं के रूप में भगवान विष्णु भारतवर्ष के बद्रिकाश्रम तीर्थ क्षेत्र में पार्थिव शिवलिङ्ग का निर्माण करके भगवान शिव का पूजन करने लगे। नर-नारायण ने भगवान भोलेनाथ से पार्थिव शिवलिङ्ग में आवाहन कर पूजा ग्रहण करने की प्रार्थना की। भक्तवत्सल भगवान शिव नित्य-प्रतिदिन श्री नर-नारायण द्वारा अर्पित पूजन स्वीकार्य करने आते थे। इसी प्रकार बहुत समय व्यतीत हो गया तथा उन दोनों की आराधना से प्रसन्न होकर दीनानाथ भगवान शिव स्वयं उन्हें दर्शन देने हेतु प्रकट होते हैं।
भगवान शिव, नर एवं नारायण से कहते हैं कि, मैं तुम्हारी निष्ठापूर्ण शिव आराधना से अति प्रसन्न हूँ, बताओं तुम्हें क्या वर चाहिये? तीनों लोकों के स्वामी भोलेनाथ के श्री मुख से इन आशीर्वचनों का श्रवण करने के पश्चात् नर-नारायण ने समस्त सृष्टि के उद्धार हेतु उनसे निवेदन करते हैं कि, हे महादेव! यदि आप प्रसन्न होकर हमें वर प्रदान करने के इच्छुक हैं, तो कृपया समस्त संसार के कल्याण की कामना से इसी स्थान पर विद्यमान होने का अनुग्रह करें।
नर-नारायण के भक्तिपूर्वक निवेदन को स्वीकार करते हुये भगवान भोलेनाथ केदार तीर्थ में ज्योतिर्लिङ्ग के रूप में विद्यमान हो गये। तदोपरान्त श्री नर-नारायण ने भगवान शिव के ज्योतिर्लिङ्ग स्वरूप की पूजा अर्चना की एवं उन्हें समस्त लोकों में श्री केदारेश्वर ज्योर्तिर्लिङ्ग के रूप में प्रतिष्ठित किया। श्री केदारेश्वर जी के दर्शन मात्र से प्रत्येक प्रकार के दुःख एवं भय का निवारण हो जाता है। प्रभु केदारनाथ का विधिवत पूजन करने वाले को स्वप्न में भी किसी प्रकार का सङ्कट पीड़ित नहीं करता है। जो शिवभक्त ज्योतिर्लिङ्ग के निकट भगवान शिव के रूप से अङ्कित वलयकार कड़ा अर्पित करता है, वह भोलेनाथ के वलय स्वरूप का दर्शन प्राप्त कर परम गति को प्राप्त करता है।
जो भी पूर्ण भक्तिभाव से श्री केदार तीर्थ की यात्रा करके तीर्थस्थल के जल का पान करता है, वह जीवन-मरण के भव-बन्धन से मुक्त हो जाता है। अपितु यदि कोई शिवभक्त श्री केदारनाथ जी की तीर्थयात्रा के उद्देश्य से निकला है एवं संयोगवश मार्ग में ही उसकी मृत्यु हो जाती है तो भी वह मोक्ष गति को प्राप्त करता है। अतः प्रत्येक शिव भक्त को परम पावन श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिङ्ग का दर्शन अवश्य करना चाहिये।
॥इति श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग उत्पत्तिः कथा सम्पूर्णः॥