भगवान विष्णु ने सनकादि ऋषियों एवं भगवान ब्रह्मा को ज्ञान प्रदान करने हेतु एक दिव्य हंस के रूप में अवतार लिया था, जिन्हें महाहंस के रूप में भी जाना जाता है। सनकादि ऋषियों एवं भगवान हंस के सम्वाद को हंसगीता के रूप में वर्णित किया गया है। भगवान हंस परम ज्ञान के मूर्त स्वरूप हैं। वे मुमुक्षुओं का मार्गदर्शन करने वाले हैं।
श्रीमद्भागवतमहापुराण, महाभारत, उद्धव गीता एवं श्रीविष्णुसहस्रनाम में भगवान के हंसावतार का वर्णन प्राप्त होता है। हंसावतार में भगवान विष्णु सनकादि ऋषियों के माध्यम से सम्पूर्ण सृष्टि को चित्त, बुद्धि, मन, अहङ्कार एवं इन्द्रियों के विषय में गूढ़ ज्ञान प्रदान करते हैं।
एक समय ब्रह्मा जी अपनी सभा में विराजमान थे। उसी समय वहाँ सनकादि ऋषियों का आगमन हुआ। सनकादि ऋषि सदैव हरिचर्चा ही करते थे। अतः वे ब्रह्मा जी से भी मनुष्यों के मोक्ष के विषय में चर्चा करने लगे। सनकादि ऋषि प्रश्न करते हुये कहते हैं - "पिताजी! चित्त सदैव विषय-भोगों एवं गुणों के चिन्तन में लगा रहता है तथा विषय भी चित्त में स्थित रहते हैं। अतएव चित्त एवं गुण एक दूसरे से सम्बन्धित हैं। अतः इस परिस्थिति में जो प्राणी संसारसागर को पार करके परम पावन मोक्ष पद प्राप्त करना चाहता है, वह चित्त एवं गुणों अथवा विषय भोगों को किस प्रकार पृथक कर सकता है।"
ब्रह्मा जी सृष्टि रचना के कार्य में व्यस्त होने के कारण सनकादि मुनियों के प्रश्न का मूल कारण एवं रहस्य ज्ञात नहीं कर सके। इसीलिये उन्होंने भगवान श्रीहरि विष्णु का स्मरण किया। ब्रह्मा जी द्वारा स्मरण करते ही सनकादि ऋषियों के माध्यम से सम्पूर्ण जगत् को मोक्ष का ज्ञान प्रदान करने हेतु भगवान विष्णु प्रकट हुये। वे एक दिव्य स्वर्णिम आभा वाले महाहंस के रूप में अवतरित हुये तथा उन्होंने सनकादि मुनियों के सन्देह का निवारण किया।
भगवान हंस कहते हैं - "प्राण एवं इन्द्रियों सहित सम्पूर्ण देह प्रारब्ध के अधीन है। अतः प्रारब्ध कर्म जिस समय तक है, उस समय तक उनकी प्रतीक्षा में यह देह रहती है। किन्तु जिस प्राणी को आत्मज्ञान हो जाता है, वह इस शरीर को स्वयं का नहीं मानता है। हे ऋषिगणों! यही सांख्य दर्शन एंव योगमार्ग का गूढ़ रहस्य है। मैं समस्त गुणों से निवृत हूँ तथा मैं ही समस्त जीवों का हितकर्ता, हितैषी, प्रिय एवं आत्मा हूँ। जागृत, स्वप्न एवं सुषुप्ति तीनों अवस्थाओं का साक्षी मैं ही हूँ। जो पुरुष निरन्तर विषय चिन्तन करता है, उसका चित्त विषयों में लिप्त हो जाता है तथा जो मेरा स्मरण करता है, उसका चित्त मुझमें लीन हो जाता है।"
इस प्रकार भगवान हंस से उपदेश ग्रहण करने के पश्चात् वहाँ उपस्थित सभी ने भगवान हंस की पूजा-अर्चना एवं स्तुति की। तदुपरान्त महाहंसरूपी भगवान श्रीविष्णु अन्तर्धान हो गये एवं अपने धाम को लौट गये।
हंस अवतार भगवान विष्णु का स्वयम्भू रूप है तथा इसमें उनके माता-पिता एवं पत्नी आदि किसी का वर्णन प्राप्त नहीं होता है।
भगवान विष्णु को इस अवतार में एक दैवीय हंस के रूप में चित्रित किया जाता है। भगवान हंस को एक अत्यन्त महान हंस के रूप में सनकादि ऋषियों को ज्ञान प्रदान करते हुये दर्शाया जाता है। महाभारत में भगवान महाहंस को एक सुवर्णमय हंस के रूप में वर्णित किया गया है।
भगवान हंस वैदिक मन्त्र -
हकारेण बहिर्याति सकारेण विशेत्पुनः।
हंसहंसेत्यमुं मन्त्रं जीवो जपति सर्वदा॥
श्री हंस गायत्री मन्त्र -
ॐ परमहंसाय विद्महे महातत्त्वाय धीमहि।
तन्नो हंस: प्रचोदयात्॥
भगवान हंस पौराणिक मन्त्र -
प्राणिनां देहमध्ये तु स्थितो हंसः सदाऽच्युतः।
हंस एव परं सत्यं हंस एव तु शक्तिकम्॥
हंस एव परं वाक्यं हंस एव तु वैदिकम्।
हंस एव परो रुद्रो हंस एव परात्परम्॥