☰
Search
Mic
En
Android Play StoreIOS App Store
Setting
Clock

Durga Saptashati Second Chapter - Hindi Translation

DeepakDeepak

Dwitiya Adhyay

Durga Saptashati is a Hindu religious text describing the victory of the goddess Durga over the demon Mahishasura. Durga Saptashati is also known as the Devi Mahatmyam, Chandi Patha (चण्डीपाठः) and contains 700 verses, arranged into 13 chapters.

The second chapter of Durga Saptashati is based on "the slaughter of the armies of Mahishasura".

॥ द्वितीयोऽध्यायः ॥

देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध

॥ विनियोग ॥

ऊँ मध्यम चरित्र के विष्णु ऋषि, महालक्ष्मी देवता, उष्णिक् छन्द, शाकम्भरी शक्ति, दुर्गा बीज, वायु तत्त्व और यजुर्वेद स्वरूप है। श्रीमहालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिये मध्यम चरित्र के पाठ में इसका विनियोग है।

॥ ध्यान ॥

मैं कमल के आसन पर बैठी हुयी प्रसन्न मुख वाली महिषासुरमर्दिनी भगवती महालक्ष्मी का भजन करता हूँ, जो अपने हाथों में अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, वज्र, पद्म, धनुष, कुण्डिका, दण्ड, शक्ति, खड्ग, ढाल, शङ्ख, घण्टा, मधुपात्र, शूल, पाश और चक्र धारण करती हैं।

ऋषि कहते हैं -॥1॥ पूर्वकाल में देवताओं और असुरों में पूरे सौ वर्षों तक घोर संग्राम हुआ था। उसमें असुरों का स्वामी महिषासुर था और देवताओं के नायक इन्द्र थे। उस युद्ध में देवताओं की सेना महाबली असुरों से परास्त हो गयी। सम्पूर्ण देवताओं को जीतकर महिषासुर इन्द्र बन बैठा॥2-3॥ तब पराजित देवता प्रजापति ब्रह्माजी को आगे करके उस स्थानपर गये, जहाँ भगवान् शङ्कर और विष्णु विराजमान थे॥4॥ देवताओं ने महिषासुर के पराक्रम तथा अपनी पराजय का यथावत् वृतान्त उन दोनों देवेश्वरों से विस्तार पूर्वक कह सुनाया॥5॥ वे बोले- 'भगवन्! महिषासुर सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण तथा अन्य देवताओं के भी अधिकार छीनकर स्वयं ही सबका अधिष्ठाता बना बैठा है॥6॥ उस दुरात्मा महिष ने समस्त देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया है। अब वे मनुष्यों की भाँति पृथ्वी पर विचरते हैं॥7॥ दैत्यों की यह सारी करतूत हमने आप लोगों से कह सुनायी। अब हम आपकी शरण में आये हैं। उसके वध का कोई उपाय सोचिये'॥8॥

इस प्रकार देवताओं के वचन सुनकर भगवान् विष्णु और शिव ने दैत्यों पर बड़ा क्रोध किया। उनकी भौंहे तन गयीं और मुँह टेढ़ा हो गया॥9॥ तब अत्यन्त कोप में भरे हुये चक्रपाणि श्रीविष्णु के मुख से एक महान् तेज प्रकट हुआ। इसी प्रकार ब्रह्मा, शङ्कर तथा इन्द्र आदि अन्यान्य देवताओं के शरीर से भी बड़ा भारी तेज निकला। वह सब मिलकर एक हो गया॥10-11॥ महान् तेज का वह पुञ्ज जाज्वल्यमान पर्वत-सा जान पड़ा। देवताओं ने देखा, वहाँ उसकी ज्वालाएँ सम्पूर्ण दिशाओं में व्याप्त हो रही थीं॥12॥ सम्पूर्ण देवताओं के शरीर से प्रकट हुये उस तेज की कहीं तुलना नहीं थी। एकत्रित होने पर वह एक नारी के रूप में परिणत हो गया और अपने प्रकाश से तीनों लोकों में व्याप्त जान पड़ा॥13॥ भगवान् शङ्कर का जो तेज था, उससे उस देवी का मुख प्रकट हुआ। यमराज के तेज से उसके सिर में बाल निकल आये। श्रीविष्णुभगवान् के तेज से उसकी भुजाएँ उत्पन्न हुयीं॥14॥

चन्द्रमा के तेज से दोनों स्तनों का और इन्द्र के तेज से मध्यभाग (कटिप्रदेश) - का प्रादुर्भाव हुआ। वरुण के तेज से जङ्घा और पिण्डली तथा पृथ्वी के तेज से नितम्ब भाग प्रकट हुआ॥15॥ ब्रह्मा के तेज से दोनों चरण और सूर्य के तेज से उसकी अँगुलियाँ हुयीं। वसुओं के तेज से हाथों की अँगुलियाँ और कुबेर के तेज से नासिका प्रकट हुयी॥16॥ उस देवी के दाँत प्रजापति के तेज से और तीनों नेत्र अग्नि के तेज से प्रकट हुये थे॥17॥ उसकी भौंहे सन्ध्या के और कान वायु के तेज से उत्पन्न हुये थे। इसी प्रकार अन्यान्य देवताओं के तेज से भी उस कल्याणमयी देवी का आविर्भाव हुआ॥18॥

तदन्तर समस्त देवताओं के तेजःपुञ्ज से प्रकट हुयी देवी को देखकर महिषासुर के सताये हुये देवता बहुत प्रसन्न हुये॥19॥ पिनाकधारी भगवान् शङ्कर ने अपने शूल से एक शूल निकालकर उन्हें दिया; फिर भगवान् विष्णु ने भी अपने चक्र से चक्र उत्पन्न करके भगवती को अर्पण किया॥20॥ वरुण ने भी शङ्ख भेंट किया, अग्नि ने उन्हें शक्ति दी और वायु ने धनुष तथा बाण से भरे हुये दो तरकस प्रदान किये॥21॥ सहस्र नेत्रों वाले देवराज इन्द्र ने अपने वज्र से वज्र उत्पन्न करके दिया और ऐरावत हाथी से उतारकर एक घण्टा भी प्रदान किया॥22॥ यमराज ने काल दण्ड से दण्ड, वरुण ने पाश, प्रजापति ने स्फटिकाक्ष की माला तथा ब्रह्माजी ने कमण्डलु भेंट किया॥23॥ सूर्य ने देवी के समस्त रोम-कूपों में अपनी किरणों का तेज भर दिया। काल ने उन्हें चमकती हुयी ढाल और तलवार दी॥24॥ क्षीरसमुद्र ने उज्ज्वल हार तथा कभी जीर्ण न होने वाले दो दिव्य वस्त्र भेंट किये। साथ ही उन्होंने दिव्य चूड़ामाणि, दो कुण्डल, कड़े, उज्ज्वल अर्धचन्द्र, सब बाहुओं के लिये केयुर, दोनों चरणों के लिये नूपुर, गले की सुन्दर हँसली और सब अँगुलियों में पहनने के लिये रत्नों की बनी अँगूठियाँ भी दीं। विश्वकर्मा ने उन्हें अत्यन्त निर्मल फरसा भेंट किया॥25-27॥ साथ ही अनेक प्रकार के अस्त्र और अभेद्य कवच दिये; इनके सिवा मस्तक और वक्षःस्थल पर धारण करने के लिये कभी न कुम्हलाने वाले कमलों की मालाएँ दीं॥28॥ जलधि ने उन्हें सुन्दर कमल का फूल भेंट किया। हिमालय ने सवारी के लिये सिंह तथा भाँति-भाँति के रत्न समर्पित किये॥29॥ धनाध्यक्ष कुबेर ने मधु से भरा पानपात्र दिया तथा सम्पूर्ण नागों के राजा शेष ने, जो इस पृथ्वी को धारण करते हैं, उन्हें बहुमूल्य मणियों से विभूषित नागहार भेंट दिया। इसी प्रकार अन्य देवताओं ने भी आभूषण और अस्त्र-शस्त्र देकर देवी का सम्मान किया। तत्पश्चात् उन्होंने बारम्बार अट्टहासपूर्वक उच्चस्वर से गर्जना की। उनके भयङ्कर नाद से सम्पूर्ण आकाश गूँज उठा॥30-32॥ देवी का वह अत्यन्त उच्चस्वर से किया हुआ सिंहनाद कहीं समा न सका, आकाश उसके सामने लघु प्रतीत होने लगा। उससे बड़े जोर की प्रतिध्वनि हुयी, जिससे सम्पूर्ण विश्व में हलचल मच गयी और समुद्र काँप उठे॥33॥ पृथ्वी डोलने लगी और समस्त पर्वत हिलने लगे। उस समय देवताओं ने अत्यन्त प्रसन्नता के साथ सिंहवाहिनी भवानी से कहा- 'देवि! तुम्हारी जय हो'॥34॥

सम्पूर्ण त्रिलोकी को क्षोभग्रस्त देख दैत्यगण अपनी समस्त सेना को कवच आदि से सुसज्जित कर, हाथों में हथियार ले सहसा उठकर खड़े हो गये। उस समय महिषासुर ने बड़े क्रोधमें आकर कहा- 'आः! यह क्या हो रहा है?' फिर वह सम्पूर्ण असुरों से घिरकर उस सिंहनाद की ओर लक्ष्य करके दौड़ा और आगे पहुँचकर उसने देवी को देखा, जो अपनी प्रभा से तीनों लोकों को प्रकाशित कर रही थीं॥35-37॥ साथ ही महर्षियों ने भक्ति भाव से विनम्र होकर उनका स्तवन किया। उनके चरणों के भार से पृथ्वी दबी जा रही थी। माथे के मुकुट से आकाश में रेखा- सी खींच रही थी तथा वे अपने धनुष की टङ्कार से सातों पातालों को क्षुब्ध किये देती थीं॥38॥ देवी अपनी हजारों भुजाओं से सम्पूर्ण दिशाओं को आच्छादित करके खड़ी थीं। तदनन्तर उनके साथ दैत्यों का युद्ध छिड़ गया॥39॥ नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों के प्रहार से सम्पूर्ण दिशाएँ उद्भासित होने लगीं। चिक्षुर नामक महान् असुर महिषासुर का सेनानायक था॥40॥ वह देवी के साथ युद्ध करने लगा। अन्य दैत्यों की चतुरङ्गिनी सेना साथ लेकर चामर भी लड़ने लगा। साठ हजार रथियों के साथ आकर उदग्र नामक महादैत्य ने लोहा लिया॥41॥ एक करोड़ रथियों को साथ लेकर महाहनु नामक दैत्य युद्ध करने लगा। जिसके रोएँ तलवार के समान तीखे थे, वह असिलोमा नामका महादैत्य पाँच करोड़ रथी सैनिकों सहित युद्ध में आ डटा॥42॥ साठ लाख रथियों से घिरा हुआ बाष्कल नामक दैत्य भी उस युद्धभूमि में लड़ने लगा। परिवारित नामक राक्षस हाथी सवार और घुड़सवारों के अनेक दलों तथा एक करोड़ रथियों की सेना लेकर युद्ध करने लगा। बिडाल नामक दैत्य पाँच अरब रथियों से घिरकर लोहा लेने लगा। इनके अतिरिक्त और भी हजारों महादैत्य रथ, हाथी और घोड़ों की सेना साथ लेकर वहाँ देवी के साथ युद्ध करने लगे। स्वयं महिषासुर उस रणभूमि में कोटि-कोटि सहस्र रथ, हाथी और घोड़ों की सेना से घिरा हुआ खड़ा था। वे दैत्य देवी के साथ तोमर, भिन्दिपाल, शक्ति, मूसल, खड्ग, परशु और पट्टिश आदि अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करते हुये युद्ध कर रहे थे। कुछ दैत्यों ने उनपर शक्ति का प्रहार किया, कुछ लोगों ने पाश फेंके॥43-48॥ तथा कुछ दूसरे दैत्यों ने खड्ग प्रहार करके देवी को मार डालने का उद्योग किया। देवी ने भी क्रोध में भरकर खेल-खेल में ही अपने अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा करके दैत्यों के वे समस्त अस्त्र-शस्त्र काट डाले। उनके मुखपर परिश्रम या थकावट का रञ्चमात्र भी चिह्न नहीं था, देवता और ऋषि उनकी स्तुति करते थे और वे भगवती परमेश्वरी दैत्यों के शरीरों पर अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा करती रहीं। देवी का वाहन सिंह भी क्रोध में भरकर गर्दन के बालों को हिलाता हुआ असुरों की सेना में इस प्रकार विचरने लगा, मानो वनों में दावानल फैल रहा हो। रणभूमि में दैत्यों के साथ युद्ध करती हुयी अम्बिका देवी ने जितने निःश्वास छोड़े, वे सभी तत्काल सैकड़ों-हजारों गणों के रूप में प्रकट हो गये और परशु, भिन्दिपाल, खड्ग तथा पट्टिश आदि अस्त्रों द्वारा असुरों का सामना करने लगे॥49-53॥

देवी की शक्ति से बढ़े हुये वे गण असुरों का नाश करते हुये नगाड़ा और शङ्ख आदि बाजे बजाने लगे॥54॥ उस संग्राम-महोत्सव में कितने ही गण मृदङ्ग बजा रहे थे। तदनन्तर देवी ने त्रिशूल से, गदा से, शक्ति की वर्षा से और खड्ग आदि से सैकड़ों महादैत्यों का संहार कर डाला। कितनों को घण्टे के भयङ्कर नाद से मूर्च्छित करके मार गिराया॥55-56॥ बहुतेरे दैत्यों को पाश से बाँधकर धरती पर घसीटा। कितने ही दैत्य उनकी तीखी तलवार की मार से दो-दो टुकड़े हो गये॥57॥ कितने ही गदा की चोट से घायल हो धरती पर सो गये। कितने ही मूसल की मार से अत्यन्त आहत होकर रक्त वमन करने लगे। कुछ दैत्य शूल से छाती फट जाने के कारण पृथ्वी पर ढ़ेर हो गये। उस रणाङ्गन में बाणसमूहों की वृष्टि से कितने ही असुरों की कमर टूट गयी॥58-59॥ बाज की तरह झपटने वाले देव पीड़क दैत्यगण अपने प्राणों से हाथ धोने लगे। किन्हीं की बाँहें छिन्न-भिन्न हो गयीं। कितनों की गर्दनें कट गयीं। कितने ही दैत्यों के मस्तक कट-कटकर गिरने लगे। कुछ लोगों के शरीर मध्यभाग में ही विदीर्ण हो गये। कितने ही महादैत्य जाँघें कट जाने से पृथ्वी पर गिर पड़े। कितनों को ही देवी ने एक बाँह, एक पैर और एक नेत्र वाले करके दो टुकड़ों में चीर डाला। कितने ही दैत्य मस्तक कट जाने पर भी गिरकर फिर उठ जाते और केवल धड़ के ही रूप में अच्छे-अच्छे हथियार हाथ में ले देवी के साथ युद्ध करने लगते थे। दूसरे कबन्ध युद्ध के बाजों की लयपर नाचते थे॥60-63॥ कितने ही बिना सिर के धड़- हाथों में खड्ग, शक्ति और ऋष्टि लिये दौड़ते थे तथा दूसरे-दूसरे महादैत्य 'ठहरो! ठहरो!!' यह कहते हुये देवी को युद्ध के लिये ललकारते थे। जहाँ वह घोर संग्राम हुआ था, वहाँ की धरती देवी के गिराये हुये रथ, हाथी, घोड़े और असुरों की लाशों से ऐसी पट गयी थी कि, वहाँ चलना-फिरना असम्भव हो गया था॥64-65॥ दैत्यों की सेना में हाथी,घोड़े और असुरों के शरीरों से इतनी अधिक मात्रा में रक्तपात हुआ था कि थोड़ी देर में वहाँ खून की बड़ी-बड़ी नदियाँ बहने लगीं॥66॥ जगदम्बा ने असुरों की विशाल सेना को क्षणभर में नष्ट कर दिया- ठीक उसी तरह, जैसे तृण और काठ के भारी ढ़ेर को आग कुछ ही क्षणों में भस्म कर देती है॥67॥ और वह सिंह भी गर्दन के बालों को हिला-हिलाकर जोर-जोर से गर्जना करता हुआ दैत्यों के शरीर से मानो उनके प्राण चुन लेता था॥68॥ वहाँ देवी के गणों ने भी उन महादैत्यों के साथ ऐसा युद्ध किया, जिससे आकाश में खड़े हुये देवतागण उनपर बहुत सन्तुष्ट हुये और फूल बरसाने लगे॥69॥

इस प्रकार श्रीमार्कण्डेय पुराण में सावर्णिक मन्वन्तर की कथा के अन्तर्गत देवी माहात्म्य
में 'महिषासुर की सेना का वध' नामक दूसरा अध्याय पूरा हुआ ॥2॥


Kalash
Copyright Notice
PanditJi Logo
All Images and data - Copyrights
Ⓒ www.drikpanchang.com
Privacy Policy
Drik Panchang and the Panditji Logo are registered trademarks of drikpanchang.com
Android Play StoreIOS App Store
Drikpanchang Donation