देवी लक्ष्मी धन, समृद्धि तथा आरोग्य की देवी हैं। हिन्दु धर्म में प्रत्येक देवता को कुछ विशेष प्रतीक, भौतिक वस्तुयें, पुष्प, पौधे, पत्ते, खाद्य पदार्थ, पक्षी तथा पशु आदि समर्पित किये गये हैं।
सांसारिक वस्तुओं का देवताओं से यह सम्बन्ध अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। देवता से सम्बन्धित सांसारिक वस्तुयें शुद्ध एवं पवित्र हो जाती हैं। इनमें से कुछ वस्तुओं को पूजा सामग्री में भी सम्मिलित कर पूजा के समय देवता को अर्पित किया जाता है। यह भेंट देवताओं की प्रसन्नता तथा पूजन सफल करने में सहायक होती है।
देवी लक्ष्मी को कमल पुष्प अत्यन्त प्रिय हैं। माँ लक्ष्मी अपने दोनों कर कमलों में कमल पुष्प धारण करती हैं तथा वह खिले हुये कमल के पुष्प पर विरजामन रहती हैं। देवी लक्ष्मी कमलगट्टे से निर्मित माला भी धारण करती हैं। इसीलिये कमल के पुष्प को अति पवित्र माना जाता है तथा इसे देवी लक्ष्मी को अर्पित किया जाता है। देवी लक्ष्मी को कमल पुष्प अर्पित करने से अधिक अन्य किसी भी वस्तु से प्रसन्नता नहीं होती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी लक्ष्मी को वाहन के रूप में श्वेत गज (सफेद हाथी) प्रिय हैं। अतः हाथियों को देवी लक्ष्मी की प्रिय सवारी के रूप में सम्मान प्रदान किया जाता है। देवी कमला के रूप में, माँ लक्ष्मी को चार हाथियों के साथ चित्रित किया गया है जो स्वर्ण के कलश से उनका अमृत अभिषेक करते रहते हैं।
श्री, हिन्दु धर्म के अन्तर्गत आने वाले पवित्र प्रतीकों में से एक है। श्री का उपयोग देवी लक्ष्मी को निरूपित करने हेतु किया जाता है। श्री, देवी लक्ष्मी का पर्यायवाची है। लक्ष्मी पूजा के दौरान, स्वयं देवी लक्ष्मी के प्रतिनिधित्व के रूप में दीवार अथवा भूमि पर श्री का चिन्ह अङ्कित किया जाता है।
हम निश्चित ही विश्वास के साथ यह कह सकते हैं कि स्वर्ण वैदिक काल की मुद्रा थी। धन एवं समृद्धि की देवी होने के कारण, देवी लक्ष्मी स्वर्ण से सम्बन्धित भी मानी जाती हैं। सामान्यतः देवी लक्ष्मी को स्वर्ण मुद्राओं से भरे स्वर्ण कलश के साथ चित्रित किया जाता है। देवी लक्ष्मी अपने एक हाथ को वरद मुद्रा में रखती हैं, जिससे निरन्तर स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा होती रहती है।
देवी लक्ष्मी का एक नाम उलूकवाहिनी है, जिसका अर्थ है वह देवी जो उल्लू की सवारी करती हैं। आधुनिक युग में जो उल्लू तिरस्कृत प्रतीत होता है, उसका वर्णन उल्लू धार्मिक ग्रन्थों में पूजनीय पक्षी रूप में प्राप्त होता है। देवी लक्ष्मी के वाहन के रूप में, उल्लू राजकीय सुख, तीक्ष्ण दृष्टि तथा बुद्धिमत्ता का प्रतिनिधित्व करता है।
देवी लक्ष्मी प्रकाश में निवास करती हैं तथा अन्धकारमय स्थानों पर जाने से बचती हैं। वैदिक काल से अन्धकार नष्ट करने हेतु उपयोग किये जाने वाले मिट्टी के दीपक स्वयं देवी लक्ष्मी का ही प्रतीक हैं। लक्ष्मी पूजा के समय यथासम्भव मिट्टी के दिये प्रज्वलित कर देवी माँ लक्ष्मी का स्वागत-सत्कार किया जाता है।
स्वास्तिक चिन्ह से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। दीवाली की पूर्व सन्ध्या पर, देवी लक्ष्मी के स्वागत हेतु द्वार के सामने स्वस्तिक चिन्ह अङ्कित किया जाता है। लक्ष्मी पूजा आरम्भ करने से पूर्व पूजा वेदी पर स्वस्तिक अङ्कित करने की भी प्रथा है।
ॐ देवी लक्ष्मी का अत्यन्त प्रिय प्रतीक है। सभी लक्ष्मी मन्त्र ओम की ध्वनि से आरम्भ होते हैं। ॐ वैदिक ध्वनि है तथा यह सर्वव्यापी है। ॐ पूर्ण सत्य होने के कारण यह देवी लक्ष्मी को अत्यन्त प्रिय है।
देवी लक्ष्मी को पीली कौड़ी अत्यधिक प्रिय हैं। पीली कौड़ी बहुत सस्ती होती है तथा धनाढ्यों के साथ-साथ निर्धनों को भी सहजता से उपलब्ध हो जाती है। पूजा के समय देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने हेतु उन्हें पीली कौड़ी अर्पित की जाती है।
अधिकांश नारियल को छीलने पर उनमें तीन बड़े बिन्दु पाये जाते हैं। यह बिन्दु नारियल में उस स्थान पर होते हैं, जहाँ वे वृक्ष की शाखा से जुड़े होते हैं। यद्यपि, एकाक्षी नारियल में मात्र एक ही बिन्दु होता है, यही इस अति विशेष दुर्लभ नारियल की विशेषता है। ऐसा नारियाल स्वयं देवी लक्ष्मी का ही प्रतिरूप माना जाता है। ऐसे नारियल को तोड़कर खाया नहीं जाता अपितु लक्ष्मी साधना में उपयोग किया जाता है।
धान्य प्राणियों के लिये सर्वोच्च धन माना जाता है। विभिन्न प्रकार के अनाज को सँयुक्त रूप से धान्य कहा जाता है। धान्य की प्रचुरता धन तथा समृद्धि का प्रतीक है। इसीलिये जहाँ भी देवी लक्ष्मी निवास करती हैं वहाँ धन-धान्य की प्रचुरता होती है। देवी लक्ष्मी के एक रूप को धान्य लक्ष्मी के नाम से जाना जाता है, जो अष्ट लक्ष्मी में से एक हैं।
श्री यन्त्र सभी यन्त्रों में सर्वश्रेष्ठ है। श्री यन्त्र स्वयं देवी त्रिपुर सुन्दरी श्री महालक्ष्मी का स्वरूप है। देवी महालक्ष्मी स्वयं इसमें निवास करती हैं तथा यह उनकी समस्त ऊर्जा एवं शक्ति का साक्षात् स्वरूप है।