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देवी तारा - दस महाविद्या में दूसरी देवी

DeepakDeepak

देवी तारा

देवी तारा

देवी तारा दस महाविद्याओं में दूसरी महाविद्या हैं। तारा, अर्थात तारों के समान सुन्दर एवं तेजोमयी देवी। अतः देवी तारा प्राणियों के जीवन को गति प्रदान करने वाली अतृप्त भूख को प्रदर्शित करती हैं।

देवी तारा ज्ञान एवं मोक्ष प्रदान करने वाली देवी हैं तथा उन्हें नील सरस्वती के रूप में भी जाना जाता है। वह खड्ग, तलवार तथा कैंची को शस्त्र के रूप में धारण करती हैं।

Goddess Tara
देवी तारा

तारा उत्पत्ति

कालान्तर में समुद्रमन्थन के समय हलाहल विष प्रकट हुआ, जिसके प्रभाव से सृष्टि की रक्षा करने हेतु भगवान शिव ने उस विष का पान कर लिया। किन्तु भगवान शिव उस विष के शक्तिशाली प्रभाव से मूर्छित होने लगे। उसी समय देवी दुर्गा, देवी तारा के रूप में प्रकट हुयीं तथा विष को प्रभावहीन करने हेतु भगवान शिव को अपनी गोद में लेकर स्तनपान कराया। अतः देवी तारा के मातृवत् स्वरूप के कारण उनकी आराधना भक्तों द्वारा अत्यन्त सुलभ मानी जाती है। हिन्दु पञ्चाङ्ग के अनुसार, तारा जयन्ती चैत्र शुक्ल नवमी को मनायी जाती है।

तारा स्वरूप वर्णन

देवी तारा का स्वरूप देवी काली के समान है। दोनों ही देवियों को चित अवस्था में लेटे भगवान शिव के ऊपर खड़े हुये तथा जिह्वा बाहर किये हुये दर्शाया जाता है। हालाँकि, देवी काली को श्याम वर्ण तथा देवी तारा को नील वर्ण स्वरूप में वर्णित किया जाता है। दोनों ही नरमुण्ड माल धारण करती हैं। देवी तारा बाघ चर्म धारण करती हैं, जबकि देवी काली कटी हुयी नर-भुजाओं की करधनी धारण करती हैं। दोनों ही देवियाँ अपनी रक्तरञ्जित जिह्वा बाहर किये रहती हैं।

देवी तारा ऊपर की एक भुजा में कमल एवं नीचे की एक भुजा में दराँत अथवा कटार धारण करती हैं। शेष दो भुजाओं में देवी तारा रक्तरञ्जित खड्ग तथा रक्त से भरा खप्पर अथवा कपाल धारण करती हैं।

तारा साधना

देवी तारा साधना, आकस्मिक लाभ, सम्पत्ति तथा समृद्धि की प्राप्ति हेतु की जाती है। तारा साधना के माध्यम से साधक के हृदय में दिव्य परम ज्ञान का उदय होता है।

तारा मूल मन्त्र

ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट्॥

अन्य तारा मन्त्रों की सूचि

तारा यन्त्र

तारा यन्त्र

तारा अष्टोत्तर शतनामावली

देवी तारा के 108 नाम

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