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भगवान कूर्म - भगवान विष्णु का द्वितीय अवतार

DeepakDeepak

भगवान कूर्म

Goddess Chandraghanta
Chandraghanta Puja - Sep 24, Wed

भगवान कूर्म

भगवान विष्णु, हिन्दु धर्म में पूजे जाने वाले सर्वाधिक प्रचलित देवताओं में से एक हैं। भगवान विष्णु को उनके भक्तगण नारायण, श्री हरि, जनार्दन एवं अच्युत आदि विभिन्न नामों से पुकारते हैं। मान्यताओं के अनुसार जब भी देवताओं, मनुष्यों अथवा सृष्टि के प्राणियों पर कोई घोर सङ्कट आता है, उस समय भगवान विष्णु उनकी रक्षा हेतु स्वयं अवतरित होते हैं। इसी क्रम में एक समय भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार धारण किया था। कूर्म अथवा कच्छप का अर्थ कछुआ होता है। अतः कछुआ का रूप धारण करने के कारण भगवान विष्णु के इस अवतार को कूर्म अवतार के नाम से जाना जाता है।

धर्मग्रन्थों में प्राप्त वर्णन के अनुसार, वैशाख शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार धारण किया था। यह तिथि विष्णु भक्तों द्वारा कूर्म जयन्ती के रूप में मनायी जाती है। विभिन्न धर्मग्रन्थों में कूर्म अवतार से सम्बन्धित पृथक-पृथक विवरण प्राप्त होते हैं।

Lord Kurma
भगवान कूर्म

श्रीमद्भागवतम् में वर्णित कूर्म अवतार की कथा के अनुसार यह भगवान विष्णु का ग्यारहवाँ अवतार है। किन्तु नरसिंहपुराण में कूर्मावतार को भगवान विष्णु के द्वितीय अवतार के रूप में वर्णित किया गया है। शतपथ ब्राह्मण, महाभारत, लिङ्गपुराण, कूर्मपुराण आदि अनेक धर्मग्रन्थों में भगवान विष्णु के कूर्म अवतार का वर्णन प्राप्त होता है। कूर्म अवतार को कच्छपावतार के नाम से भी जाना जाता है।

भगवान कूर्म उत्पत्ति

कूर्म अवतार की प्रथम कथा के अनुसार, कालान्तर में दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने अपने तपोबल से भगवान शिव को प्रसन्न करके उनसे सञ्जीवनी विद्या का वरदान प्राप्त कर लिया। जिसके पश्चात् जब भी कोई दैत्य युद्ध में घायल हो जाता अथवा उसकी मृत्यु हो जाती, शुक्राचार्य जी उसे सञ्जीवनी विद्या का प्रयोग करके पुनः जीवित एवं स्वस्थ कर देते थे।

सञ्जीवनी विद्या का चमत्कार देखकर, दैत्यराज बलि ने असुरों की विशाल सेना सहित देवताओं पर आक्रमण कर दिया। देवता ज्यों ही असुरों का वध करते, दैत्यगुरु शुक्राचार्य उन्हें पुनः जीवित कर देते थे। अन्ततः सञ्जीवनी विद्या के कारण असुरों ने देवताओं को पराजित कर दिया तथा इन्द्र को स्वर्गलोक से निष्कासित कर राजा बलि ने अपना शासन स्थापित कर लिया।

इस घोर सङ्कट की घड़ी में कोई अन्य मार्ग न होने पर समस्त देवतागण भगवान श्री हरि विष्णु जी की शरण में जा पहुँचे तथा उनसे अपने प्राणों की रक्षा हेतु प्रार्थना करने लगे। भगवान विष्णु ने देवताओं को असुरों के साथ मिलकर समुद्र मन्थन करने का सुझाव दिया, ताकि समुद्र से अमृत प्राप्त कर देवताओं को चिरञ्जीवी किया जा सके। यद्यपि आरम्भ में असुर समुद्र मन्थन में सम्मिलित होने को तैयार नहीं थे, किन्तु देवर्षि नारद द्वारा समझाने के पश्चात् असुर समुद्रमन्थन हेतु तैयार हो गये।

अति विशाल समुद्र का मन्थन करने हेतु मन्दराचल पर्वत की मथानी तथा वासुकि नाग की रस्सी बनायी गयी। किन्तु ज्यों ही समुद्र मन्थन हेतु मन्दराचल पर्वत को समुद्र में लाया गया, कोई आधार न होने के कारण वह डूबने लगा। अतः समुद्र मन्थन का कार्य बाधित हो गया। पुनः सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता हेतु प्रार्थना की, जिसके फलस्वरूप देवताओं के कार्य की सिद्धि हेतु भगवान विष्णु कच्छप अर्थात् कूर्म के रूप में प्रकट हुये तथा अपनी पृष्ठ (पीठ) पर मन्दराचल पर्वत को धारण कर लिया, जिसके परिणामस्वरूप समुद्र मन्थन सम्पन्न हुआ एवं देवताओं को अमरत्व की प्राप्ति हुयी। भगवान विष्णु का यह कच्छप रूप ही समस्त लोकों में कूर्म अवतार के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

पद्मपुराण में प्राप्त कूर्म अवतार से सम्बन्धित कथा के अनुसार, एक समय महर्षि दुर्वासा ने देवराज इन्द्र को पारिजात पुष्पों की एक सुन्दर माला भेंट की, किन्तु अभिमानवश इन्द्र ने वह माला ऐरावत के मस्तक पर डाल दी तथा ऐरावत ने वह माला अपनी सूँड से भूमि पर डाल दी। इन्द्र के इस कृत्य से ऋषि दुर्वासा को अपमानित अनुभव हुआ। अतः अपने अपमान से कुपित होकर महर्षि दुर्वासा ने देवताओं को श्राप दे दिया कि - "तुम्हारा समस्त वैभव नष्ट हो जायेगा एवं देवता श्री हीन हो जायेंगे"। महर्षि दुर्वासा के श्राप के प्रभाव से देवी लक्ष्मी समुद्र में विलीन हो गयीं। देवी लक्ष्मी के लुप्त होते ही देवलोक, असुरलोक आदि समस्त लोकों का वैभव क्षीण हो गया तथा देवता शक्तिहीन हो गये। तत्पश्चात्‌ सभी देवताओं सहित इन्द्र, भगवान विष्णु के समक्ष त्राहि माम् करते हुये पहुँचे।

भगवान विष्णु ने देवताओं एवं दैत्यों को देवी लक्ष्मी को पुनः प्राप्त करने हेतु समुद्रमन्थन करने का परामर्श दिया। समुद्रमन्थन हेतु ज्यों ही मन्दराचल पर्वत को लाया गया, वह उस अथाह जल में डूबने लगा। उस समय भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार धारण कर मन्दराचल पर्वत को अपनी पृष्ठ पर धारण किया तथा समुद्र मन्थन जैसे दुर्गम कार्य को सम्पन्न किया। समुद्र मन्थन द्वारा प्राप्त चौदह रत्नों में देवी लक्ष्मी का भी प्रादुर्भाव हुआ तथा उन्होंने भगवान विष्णु का वरण कर देवताओं को उनका वैभव पुनः प्रदान किया।

लिङ्गपुराण में भी कूर्म अवतार से सम्बन्धित वर्णन प्राप्त होता है, जिसके अनुसार कालान्तर में पृथ्वी रसातल में लुप्त हो रही थी, उस समय सृष्टि के पालनकर्ता भगवान श्री नारायण स्वयं समस्त प्राणियों की रक्षा हेतु कच्छप रूप में अवतरित हुये थे। धर्मग्रन्थों के अनुसार कूर्म भगवान की पीठ का विस्तार एक लाख योजन था।

भगवान कूर्म कुटुम्ब वर्णन

भगवान कूर्म भगवान विष्णु के द्वितीय अवतार हैं। इस अवतार में भगवान विष्णु स्वयं ही एक कच्छप के रूप में प्रकट हुये थे तथा उनके माता-पिता अथवा पत्नी से सम्बन्धित कोई वर्णन प्राप्त नहीं होता है। अतः उनका कोई पृथक कुटुम्ब नहीं है।

भगवान कूर्म स्वरूप वर्णन

भगवान कूर्म को चतुर्भुज रूप में नाना प्रकार के स्वर्णभूषणों से अलङ्कृत दर्शाया जाता है। उनकी नीचे की अर्ध देह कूर्म अर्थात् कछुये की तथा ऊपरी अर्ध देह मनुष्यरूपी है। कूर्म भगवान अपनी चार भुजाओं में शङ्ख, चक्र, गदा तथा पद्म धारण करते हैं। भगवान कच्छप को विशाल जल समुद्र के मध्य प्रसन्नचित्त मुद्रा में विराजमान चित्रित किया जाता है।

भगवान कूर्म मन्त्र

सामान्य मन्त्र -

ॐ कूर्माय नमः।

कूर्म विष्णु मन्त्र -

ॐ आं ह्रीं कौं कूर्मासनाय नमः।

कूर्म गायत्री मन्त्र -

ॐ कच्छपेसाय विद्महे महाबलाय धीमहि।
तन्नो कूर्मः प्रचोदयात्॥

भगवान कूर्म से सम्बन्धित त्यौहार

भगवान कूर्म के प्रमुख एवं प्रसिद्ध मन्दिर

  • कूर्मनाथस्वामी मन्दिर, श्रीकुर्मम, आन्ध्र प्रदेश
  • भगवान कूर्म नारायण मन्दिर विभीषण कुण्ड, अयोध्या, उत्तर प्रदेश
  • श्री गोदाविहार मन्दिर, वृन्दावन, उत्तर प्रदेश
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द्रिक पञ्चाङ्ग और पण्डितजी लोगो drikpanchang.com के पञ्जीकृत ट्रेडमार्क हैं।
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