हिन्दु धर्मग्रन्थों के अनुसार शेषनाग जी भगवान विष्णु के ही अंशावतार हैं, जो प्रत्येक अवतार में विष्णु जी के साथ ही विभिन्न रूपों में अवतरित होते हैं। बलराम जी को शेषनाग के अवतार के रूप में वर्णित किया गया है। अतः बलराम जी भी भगवान विष्णु के ही शेषावतार हैं।
पूर्णिमान्त हिन्दु पञ्चाङ्ग के अनुसार भगवान बलराम जी का प्रादुर्भाव भाद्रपद कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि को हुआ था तथा अमान्त हिन्दु पञ्चाङ्ग के अनुसार बलराम जी श्रावण कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि को अवतरित हुये थे। यह तिथि हिन्दुओं द्वारा बलराम जयन्ती के रूप में मनायी जाती है। बलराम जी को बलभद्र, सङ्कर्षण, हलधर, हलायुध तथा बलदाऊ जी के नाम से भी जाना जाता है। ब्रज एवं उसके समीपवर्ती क्षेत्रों में बलराम जी को दाऊ दादा कहकर सम्बोधित किया जाता है।
भगवान बलराम का जन्म यदुवंश कुल में हुआ था। द्वापरयुग में मथुरा नगरी में कंस नामक एक राक्षस था। कंस ने अपने पिता उग्रसेन को बन्दी बनाकर स्वयं राज्य पर आधिपत्य जमा लिया। कंस की एक बहन भी थीं, जिनका नाम देवकी था। उचित समय आने पर कंस ने अपनी बहन देवकी का विवाह वसुदेव यादव जी से करवा दिया। धर्म ग्रन्थों में प्राप्त वर्णन के अनुसार ब्रह्मा जी के एक श्राप के कारण स्वयं ऋषि कश्यप ही वसुदेव जी के रूप में अवतरित हुये थे। वसुदेव जी को आनकदुन्दुभि के नाम से भी जाना जाता है।
विवाह के उपरान्त कंस अपनी बहन देवकी एवं उनके पति वसुदेव को स्वयं रथ में बिठाकर विदा करने जा रहा था। उसी समय आकाशवाणी हुयी कि - "हे दुष्ट कंस! तू अपनी जिस प्रिय बहन को प्रेमपूर्वक रथ में बिठाकर ले जा रहा है, उसका आठवाँ पुत्र तेरा काल बनकर जन्म लेगा"। आकाशवाणी को सुनते ही कंस ने देवकी एवं वसुदेव को कारागार में बन्दी बना लिया तथा उनकी आठवीं सन्तान होने की प्रतीक्षा करने लगा।
कुछ समय पश्चात् देवर्षि नारद कंस से मिलने आये तथा उसे एक अष्टदल का पुष्प दिखाकर बोले - "इस पुष्प की पँखुड़ियों की गणना किसी भी ओर से की जा सकती है, अतः इनमें से आठवीं पँखुड़ी कौन-सी है, यह नहीं कहा जा सकता।" कंस ने नारद जी के वचनों के मर्म को समझकर यह निर्णय किया कि वह देवकी एवं वसुदेव की समस्त सन्तानों की जन्म लेते ही हत्या कर देगा, ताकि उनमें से कोई भी उसकी मृत्य का कारण न बन सके।
तदनन्तर कंस ने एक-एक करके अपनी बहन देवकी के 6 पुत्रों की जन्म लेते ही हत्या कर दी। देवकी के 7वें पुत्र के रूप में शेषनाग के अवतार श्री बलराम जी उनके गर्भ में अवतरित हुये। श्री बलराम जी की सुरक्षा हेतु भगवान श्री हरि विष्णु ने अपनी योगमाया द्वारा बलराम जी के अंश को माता देवकी के गर्भ से सङ्कर्षण क्रिया द्वारा माता रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। इसीलिये बलराम जी का एक नाम सङ्कर्षण भी है। तदुपरान्त माता रोहिणी के पुत्र के रूप में भगवान बलराम जी का जन्म हुआ।
बलराम जी की एक बहन भी थीं, जिनका नाम सुभद्रा था। देवी सुभद्रा को देवी चित्रा के नाम से भी जाना जाता है। बलराम जी का विवाह रेवत की कन्या रेवती से हुआ था। मान्यताओं के अनुसार, रेवती जी की लम्बाई 21 हाथ थी, जिसके कारण बलराम जी ने अपने हल से दबाकर उनका आकार छोटा किया था।
बलराम जी सदैव भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं में सम्मिलित रहे हैं। स्यमन्तक मणि की खोज के समय भी भगवान श्रीकृष्ण के साथ बलराम जी भी गये थे। बलराम जी गदायुद्ध में निपुण थे तथा महाभारत काल में उन्होंने भीमसेन जी एवं दुर्योधन को गदायुद्ध का प्रशिक्षण प्रदान किया था।
एक समय भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने विवाह करने के उद्देश्य से दुर्योधन की कन्या लक्ष्मणा का हरण करने का प्रयास किया। लक्ष्मणा का हरण करते समय कौरव सेना ने साम्ब को बन्दी बना लिया। उस समय बलराम जी ने ही उन्हें कौरव सेना से मुक्त कराया।
द्वापरयुग के अन्त में एवं कलियुग के आरम्भ में जिस समय श्री कृष्ण जी का गोलोक गमन हुआ, उस समय श्री बलराम जी भी अपनी लीला समाप्त करके उनके साथ चले गये। मान्यताओं के अनुसार अन्त समय में बलराम जी के मुख से एक विशाल नाग का प्राकट्य हुआ तथा वह नाग प्रभास क्षेत्र में स्थित समुद्र में विलीन हो गया।
बलराम जी सर्वप्रथम माता देवकी के गर्भ में स्थित हुये, किन्तु भगवान विष्णु की योगमाया ने उन्हें सङ्कर्षण विधि द्वारा माता रोहिणी के गर्भ में हस्तान्तरित कर दिया। अतः बलराम जी के पिता वसुदेव एवं माता रोहिणी हैं। भगवान कृष्ण उनके भ्राता एवं देवी सुभद्रा उनकी सहोदरी बहन हैं। भगवान बलराम जी का विवाह देवी रेवती से हुआ, जिनके द्वारा उन्हें निषस्थ एवं उल्मुख नामक पुत्रों तथा वत्सला नामक पुत्री की प्राप्ति हुयी।
धर्मग्रन्थों में भगवान बलराम को गौर वर्ण वाला वर्णित किया गया है। बलराम जी को सामान्यतः द्विभुज रूप में एक हाथ में हल तथा दूसरे हाथ में मूसल लिये हुये दर्शाया जाता है। कुछ चित्रों में उन्हे चतुर्भुज रूप में शङ्ख, चक्र, हल तथा मूसल धारण किये हुये भी दर्शाया जाता है।
सामान्य मन्त्र -
ॐ हलधाराय संकर्षणाय नमः।
बीज मन्त्र -
ॐ क्लीं हलधर बलभद्राय नमः।
बलराम गायत्री मन्त्र -
ॐ अश्त्रहस्ताय विद्महे पीताम्बराय धीमहि।
तन्नो बलराम प्रचोदयात्॥