चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान सबसे महत्वपूर्ण है। अभ्यंग स्नान को नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन अभ्यंग स्नान करने वाले लोग नरक जाने से बच सकते हैं। अभ्यंग स्नान के दौरान उबटन के लिए तिल के तेल का उपयोग किया जाना चाहिये।
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को प्रातःकाल 'अपामार्ग' और 'चकबक' को स्नान के समय मस्तक पर घुमाना चाहिये। इससे नरक के भय का नाश होता है। उस समय निम्न प्रकार से प्रार्थना करे-
हे अपामार्ग! मैं काँटों और पत्तों सहित तुम्हें अपने मस्तक पर बार-बार घुमा रहा हूँ। तुम मेरे पाप हर लो।
स्नान के पश्चात् 'यम' के चौदह (14) नामों का तीन-तीन बार उच्चारण करके तर्पण (जल-दान) करना चाहिये। साथ ही 'श्री भीष्म' को तीन अञ्जलियाँ जल-दान देकर तर्पण करना चाहिये, यहाँ तक कि जिनके पिता जीवित हैं, उन्हें भी यह जल-अञ्जलियाँ देनी चाहिये। जल-अञ्जलि हेतु यमराज के निम्नलिखित 14 नामों का तीन बार उच्चारण करना चाहिये-
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को सायं-काल घर से बाहर नरक-निवृत्ति के लिए धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष-रुपी चार बत्तियों का दीपक यम-देवता के लिए सर्वप्रथम जलाना चाहिये। इसके पश्चात् गो-शाला, देव-वृक्षों के नीचे, रसोई-घर, स्नानागार आदि में दीप जलाये। इस प्रकार 'दीप-दान' के बाद नित्य का पूजन करे।