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Lord Dattatreya | Dattatreya Avatara | Datta Guru

DeepakDeepak

Lord Dattatreya

Lord Dattatreya

श्रीमद्भागवतमहापुराण के अनुसार भगवान दत्तात्रेय भगवान विष्णु के छठवें अवतार हैं। भगवान दत्तात्रेय को श्रीगुरुदेवदत्त एवं दत्तगुरु के नाम से भी जाना जाता है। भगवान दत्तात्रेय के रूप में अवतरित होकर विष्णु जी ने संसार को गुरु-शिष्य की परम्परा का ज्ञान प्रदान किया था। धर्मग्रन्थों में प्राप्त वर्णन के अनुसार भगवान दत्तात्रेय को भगवान विष्णु, भगवान ब्रह्मा एवं भगवान शिव तीनों का संयुक्त अवतार माना जाता है।

Lord Dattatreya
भगवान दत्तात्रेय

भगवान दत्तात्रेय ने अपने जीवनकाल में 24 गुरु बनाये थे। ये 24 गुरु वे थे जिनसे उन्हें किसी न किसी प्रकार की शिक्षा प्राप्त हुयी थी। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, समुद्र, अजगर, कपोत, पतंगा, मछली, हिरण, हाथी, मधुमक्खी, कुरर पक्षी, कुँवारी कन्या, सर्प, बालक, पिंगला वैश्या, मकड़ी, भृंगी कीट, बाण बनाने वाला तथा शहद निकालने वाला इन सभी को भगवान दत्तात्रेय ने अपना गुरु माना था।

भगवान दत्तात्रेय उत्पत्ति

भगवान दत्तात्रेय के अवतरण के सम्बन्ध में प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीनकाल में सप्तऋषियों में से एक अत्रि ऋषि की सहधर्मिणी देवी अनुसूया सोलह सतियों में से एक थीं।

एक समय की बात है देवर्षि नारद देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती एवं देवी पार्वती अर्थात् त्रिदेवियों के सम्मुख उपस्थित हुये तथा उन्होंने उनसे कहा कि तीनों लोकों में देवी अनुसूया से महान कोई भी सती एवं पतिव्रता स्त्री नहीं है। नारद जी के वचन सुनकर तीनों देवियों को अत्यन्त ईर्ष्या हुयी तथा उन्होंने माता अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने का निश्चय किया।

उधर भूलोक पर माता अनुसूया त्रिदेव अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के समान पुत्र की प्राप्ति की कामना से कठिन तपस्या में लीन थीं। त्रिदेवियों ने अपने पतियों से कहा कि वे देवी अनुसूया की परीक्षा लेने के लिये पृथ्वीलोक पर जायें। त्रिदेवों ने सर्वप्रथम देवियों को समझाने का प्रयत्न किया कि देवी अनुसूया एक परम पतिव्रता एवं सती स्त्री हैं, अतः इस प्रकार उनकी परीक्षा लेना उचित नहीं है, किन्तु तीनों देवियों के हठ करने पर ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश तीनों देवता साधुओं का वेश धारण करके देवी अनुसूया के सतीत्व एवं पतिव्रता धर्म की परीक्षा लेने हेतु पृथ्वीलोक पहुँच गये।

देवी अनुसूया के द्वार पर पहुँचकर साधुवेषधारी त्रिदेवों ने उनसे भोजन का निवेदन किया। देवी अनुसूया ने त्रिदेवों से कुटिया के अन्दर आकार आसन स्वीकार करने का आग्रह किया। साधुओं के रूप में आये त्रिदेव कुटिया में आसन पर विराजमान हो गये। माता अनुसूया ने कहा कि - "आप कुछ क्षण प्रतीक्षा करें मैं अभी कुछ भोजन तैयार करके लाती हूँ।" किन्तु उन साधुवेषधारी त्रिदेवों ने कहा कि - "हम केवल आपके स्तनों से दुग्धपान करेंगे तथा इसके अतिरिक्त कुछ भी ग्रहण नहीं करेंगे। यदि दुग्धपान नहीं कराया तो हम भूखे ही लौट जायेंगे।"

देवी अनुसूया को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। एक ओर इन साधुओं की यह विचित्र इच्छा थी तो दूसरी ओर उन्हें यह चिन्ता भी थी कि यदि वे भूखे लौटेंगे तो उन्हें सन्त अपराध लगेगा। इस दुविधा में माता अनुसूया ने मन ही मन अपने पति अत्रि ऋषि से पूछा की उन्हें क्या करना चाहिये। अत्रि ऋषि तपस्या कर रहे थे, उन्होंने समस्त प्रकरण को ज्ञातकर सती अनुसूया से साधुओं की इच्छा पूर्ण करने का निवेदन किया।

अपने पति की आज्ञा प्राप्त होते ही सती अनुसूया ने अपने हाथ में कुछ जल लिया तथा मन्त्र से उस जल को अभिमन्त्रित करते हुये उन तीनों साधुओं पर छिड़क दिया। जल पड़ते ही माता अनुसूया के सतीत्व के प्रभाव से ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही छोटे-छोटे शिशुओं के रूप में परिवर्तित हो गये। तदुपरान्त उन शिशुओं को सती अनुसूया ने स्तनपान कराया एवं एक पालने में लिटा दिया। बहुत समय व्यतीत होने पर भी जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश स्वर्गलोक लौटकर नहीं आये तब तीनों देवियों को चिन्ता होने लगी तथा अपने पतियों को ढूँढते हुये त्रिदेवियाँ सती अनुसूया के आश्रम में पहुँच गयीं। वहाँ पहुँचकर देवी सरस्वती, देवी लक्ष्मी एवं देवी पार्वती ने देखा कि उन तीनों के पति तो शिशु रूप में पालने में लेटे हैं और माता अनुसूया उन्हें पालने में झूला झुला रही हैं।

तीनों देवियाँ माता अनुसूया से उनके पतियों को पुनः उनके मूल स्वरूप प्रदान करने की प्रार्थना करने लगीं। सती अनुसूया ने त्रिदेवियों से कहा कि - "त्रिदेवों ने मेरा स्तनपान किया है, अतः इन्हें मेरे पुत्र के रूप में मेरे समीप ही रहना होगा।" देवी अनुसूया की बात मानकर त्रिदेवों ने सती अनुसूया को उनके गर्भ से भगवान दत्तात्रेय, ऋषि दुर्वासा एवं चन्द्रदेव के रूप में अवतरित होने का वरदान दिया।

तदुपरान्त माता अनुसूया ने पुनः तीनों देवों को उनका मूल स्वरूप प्रदान किया एवं त्रिदेवियों को सौंप दिया। कालान्तर में वरदान के अनुसार माता अनुसूया के गर्भ से भगवान दत्तात्रेय, ऋषि दुर्वासा एवं चन्द्रदेव का अवतार हुआ। भगवान दतात्रेय तीनों देवों के अवतार थे। भगवान दत्तात्रेय की देह तो एक थी किन्तु उनके तीन मुख एवं छः भुजायें थीं। मान्यताओं के अनुसार भगवान दत्तात्रेय को मुख्यतः विष्णु जी का, चन्द्रदेव को ब्रह्माजी का तथा ऋषि दुर्वासा को भगवान शिव का अवतार माना जाता है।

एक समय महाराज यदु ने भगवान दत्तात्रेय से उनके गुरु के विषय में प्रश्न किया, जिसका उत्तर देते हुये भगवान दत्तात्रेय ने कहा - "आत्मा ही मेरे गुरु हैं, किन्तु मैंने चौबीस व्यक्तियों को गुरु मानकर शिक्षा ग्रहण की है।"

दत्तात्रेय भगवान की पत्नी अनघा देवी से सम्बन्धित कथा के अनुसार एक समय पाँच वर्ष की आयु में दत्तात्रेय जी एक सरोवर के अन्दर चले गये, उनके भक्त सरोवर के तट पर उनकी प्रतीक्षा करने लगे। अनेक वर्ष व्यतीत होने पर दत्तात्रेय भगवान ने अपनी यौगिक शक्ति को एक देवी के रूप में प्रकट कर उन्हें सरोवर के तट पर यह जाँचने हेतु भेजा कि कौन-कौन उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। सरोवर से बाहर आकर वे शक्तिस्वरूपा देवी नृत्य करने लगीं जिसके कारण लोगों ने उन्हें भिन्न-भिन्न अपमानजनक नामों से सम्बोधित किया। भगवान दत्तात्रेय ने सरोवर से बाहर आकर शक्तिस्वरूपा देवी का नाम अनघा रखा जिसका अर्थ होता है निष्पाप। तदुपरान्त जिन भी भक्तों ने उन शक्तिस्वरूपा देवी को पवित्र माना उन सभी को सुख समृद्धि की प्राप्ति हुयी।

भगवान दत्तात्रेय कुटुम्ब वर्णन

भगवान दत्तात्रेय के पिता सप्त ऋषियों में से एक महर्षि अत्रि तथा माता सती अनुसूया हैं। महर्षि दुर्वासा एवं चन्द्रदेव दत्तात्रेय जी के भ्राता हैं। अनघा देवी भगवान दत्तात्रेय की धर्मपत्नी हैं, जिनसे उन्हें आठ पुत्रों की प्राप्ति हुयी थी।

भगवान दत्तात्रेय स्वरूप वर्णन

भगवान दत्तात्रेय को तीन मुख वाले रूप में धोती एवं जनेऊ धारण किये हुये दर्शाया जाता है। उनकी छः भुजायें हैं। वे अपनी छः भुजाओं में त्रिशूल, शङ्ख, पद्म, गदा, दर्पण तथा कमण्डलु धारण करते हैं। भगवान दत्तात्रेय से सम्बन्धित चित्रों में उनके साथ गाय एवं कुत्तों को भी दर्शाया जाता है।

भगवान दत्तात्रेय मन्त्र

दत्तात्रेय बीज मन्त्र -

ॐ द्रां॥

दत्तात्रेय मूल मन्त्र -

ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नमः।

दत्तात्रेय गायत्री मन्त्र -

ॐ दिगम्बराय विद्महे योगीश्वराय धीमहि।
तन्नो दत्तः प्रचोदयात्॥

भगवान दत्तात्रेय से सम्बन्धित त्यौहार

भगवान दत्तात्रेय के प्रमुख एवं प्रसिद्ध मन्दिर

  • श्री दत्तात्रेय मन्दिर, कुर्वापुरा, कर्णाटक
  • गरुडे़श्‍वर दत्त मन्दिर, तिलकवाड़ा, गुजरात
  • भगवान दत्तात्रेय मन्दिर, ब्रह्माघाट, काशी, उत्तर प्रदेश
  • प्राचीन दत्तात्रेय मन्दिर, कृष्णपुरा, इन्दौर, मध्य प्रदेश
  • दत्तात्रेय भगवान मन्दिर, सिकड़ी कोल, उत्तर प्रदेश
  • षोडश दत्त क्षेत्र अर्थात् भगवान दत्तात्रेय के 16 दत्त तीर्थ
Kalash
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