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-0054 Adhika Jyeshtha Purnima Upavasa date for Cambridge, Massachusetts, United States

DeepakDeepak

-0054 Adhika Jyeshtha Purnima Upavasa

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-0054
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Location
Cambridge, United States
Adhika Jyeshtha Purnima Upavasa
2nd
May -0054
Wednesday / बुधवार
Family worshiping Lord Chandra on Jyeshtha Purnima
Lady performing Purnima Puja with Family

Adhika Jyeshtha Purnima Upavasa Timings

Adhika Jyeshtha Purnima Upavasa on Wednesday, May 2, -0054
Shukla Purnima Moonrise on Adhika Jyeshtha Purnima Upavasa - 18:50
Purnima Tithi Begins - 14:33 on May 01, -0054
Purnima Tithi Ends - 17:04 on May 02, -0054

Notes: All timings are represented in 24+ hour notation in local time of Cambridge, United States with DST adjustment (if applicable).
Hours past midnight are higher than 24:00 and fall on next day. In Panchang day starts and ends with sunrise.

-0054 Adhika Purnima Upavasa

हिन्दु धर्म में पूर्णिमा व्रत को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है। भविष्यपुराण में वर्णित बत्तीसी पूर्णिमा व्रत के अनुसार मार्गशीर्ष, माघ तथा वैशाख माह की पूर्णिमा से आरम्भ करके भाद्रपद तथा पौष माह की पूर्णिमा को इस व्रत का उद्यापन करना चाहिये। बत्तीसी पूर्णिमा व्रत को द्वात्रिंशी पूर्णिमा व्रत भी कहा जाता है। इस व्रत को करने से समस्त प्रकार के सुख-सौभाग्य एवं पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति होती है।

पूर्णिमा तिथि को भगवान विष्णु के पूजन हेतु भी अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। पूर्णिमा के दिन चन्द्रदेव अपने सम्पूर्ण रूप में प्रकाशित होते हैं। इस अवसर पर चन्द्रोपासना का विशेष लाभ होता है। स्कन्दपुराण, पद्मपुराण, नारदपुराण, भविष्यपुराण तथा महाभारत आदि धार्मिक ग्रन्थों में पूर्णिमा व्रत का उल्लेख प्राप्त होता है। इस कल्याणकारी पूर्णिमा व्रत को पापों के क्षय, पुण्य वृद्धि तथा मानसिक शुद्धि हेतु अत्यन्त फलदायी बताया गया है।

पूर्णिमा व्रत सङ्क्षिप्त विधि

पूर्णिमा व्रत के दिन यदि सम्भव हो तो प्रातःकाल किसी पवित्र नदी में स्नान एवं तर्पण करें अन्यथा घर पर ही जल में गङ्गाजल मिश्रित कर स्नान करें। तदुपरान्त व्रत का सङ्कल्प ग्रहण करें - "मैं अपने परिवार की कुशलता एवं सुख-सौभाग्य तथा समृद्धि की कमाना से द्वात्रिंशी पूर्णिमा का व्रत करूँगा। व्रत के निर्विघ्न रूप से पूर्ण होने हेतु भगवान गणपति की पूजा एवं कलश पूजन भी करूँगा।"

  • सङ्कल्प ग्रहण करने के पश्चात् सर्वप्रथम कलश स्थापना एवं भगवान गणेश का पूजन करें।
  • तदुपरान्त देवी पार्वती सहित भगवान शिव की षोडशोपचार विधि से विस्तृत पूजा-अर्चना करें।
  • षोडशोपचार शिव पूजन के अतिरिक्त इस दिन विभिन्न परम्पराओं के अनुसार भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी एवं चन्द्रदेव का पूजन भी किया जाता है।
  • दिवस पर्यन्त उपवास का पालन करें तथा भगवान का ध्यान, जप, भजन आदि करें।
  • सायाह्नकाल में चन्द्रदेव को अर्घ्य अर्पित कर उनका पूजन करें।
  • श्रद्धापूर्वक पूर्णिमा व्रत कथा का पाठ एवं श्रवण करें।
  • इस दिन सत्यनारायण व्रत कथा का आयोजन भी अत्यन्त शुभ माना जाता है।

इस प्रकार पूर्णिमा व्रत की सङ्क्षिप्त एवं सरल विधि सम्पूर्ण होती है।

पूर्णिमा व्रत में आहार विचार

पूर्णिमा उपवास में आहार को लेकर विभिन्न क्षेत्रीय मत प्रचलित हैं, किन्तु सामान्यतः इस उपवास में जल, फल तथा दुग्ध निर्मित सात्विक पदार्थों का सेवन किया जाता है। अनेक व्रती केवल जल पर उपवास करते हैं। इस व्रत में सभी प्रकार के अनाज, मसाले, तम्बाकू, चाय-कॉफी आदि तामसिक भोजन वर्जित होते हैं।

पूर्णिमा व्रत का पारण

पूर्णिमा व्रत के पारण का समय व्रत के प्रकार पर भी निर्भर करता है। हालाँकि व्रत के सर्वाधिक प्रचलित प्रकार के अनुसार सायाह्नकाल में चन्द्रमा को अर्घ्य अर्पित करने के पश्चात् पूर्णिमा व्रत का पारण किया जाता है। पारण हेतु ब्राह्मण को यथाशक्ति अन्न, वस्त्र, घी, तिल, चावल आदि का दान करना चाहिये। तदुपरान्त दक्षिणा सहित ब्राह्मण भोज करवाकर स्वयं भी फलाहार आदि कर व्रत सम्पन्न करना चाहिये।

पूर्णिमा व्रत का उद्यापन

भविष्यपुराण में प्राप्त वर्णन के अनुसार विशेषतः ज्येष्ठ पूर्णिमा अथवा किसी भी अन्य पवित्र माह की पूर्णिमा पर व्रत का उद्यापन करना चाहिये। उद्यापन की सरल विधि निम्नलिखित है।

सर्वप्रथम भूमि को लीपकर चौक पूरें। उसके मध्य में मिट्टी का कलश स्थापित कर उसके ऊपर बाँस का पात्र रखकर उसे ढँक दें। यथाशक्ति एक या आधे पल स्वर्ण की श्री उमा-महेश्वर की मूर्ति निर्मित करवायें। वृषभ सहित उस मूर्ति को पात्र पर स्थापित कर दें। तदुपरान्त भगवान शिव का षोडशोपचार पूजन करें। रात्रिकाल में भजन, कीर्तन एवं जागरण करें। प्रातःकाल स्नानादि कर्म से निवृत्त होकर शिव पञ्चाक्षर मन्त्र से हवन करें। तिल, यव, घी के शाकल्य से 108 आहुति प्रदान करें। हवन सम्पन्न होने पर आचार्यों का पूजन करें। बत्तीस प्रकार के फलों को वस्त्र में लपेटकर दीपक को धान के ऊपर रखकर "वाणकं तव तुष्टयर्थं ददामी गिरिजापते।" का उच्चारण करते हुये आचार्य को प्रदान करें।

तदुपरान्त बत्तीस ब्राह्मण, बत्तीस स्त्रियों सहित अन्य आचार्यों को छहों रसों से युक्त भोजन अर्पित करें। धर्मग्रन्थों में इस अवसर पर आचार्य को बछड़े सहित गाय दान करने का विधान है, किन्तु सामर्थ्य न होने की स्थिति में यथाशक्ति दान-दक्षिणा देकर आचार्य का आशीर्वाद ग्रहण करें। तत्पश्चात् पूर्णाहुति कर हवन का समापन करें। ब्राह्मणों के भोजनोपरान्त शेष सामग्री का स्वयं भोजन करें। इस प्रकार भविष्यपुराण में वर्णित पूर्णिमा व्रत की उद्यापन विधि का सङ्क्षिप्त वर्णन समाप्त होता है।

Kalash
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