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Purnima Vrat Katha | Legend of Purnima Vrat

DeepakDeepak

Purnima Vrat Katha

Purnima Vrat Katha

प्राचीन काल की बात है। एक समय नारद मुनि देवताओं के लोकों का भ्रमण करते हुये विष्णुलोक पहुँचे। वहाँ उन्हें श्रीहरि विष्णु के शङ्ख, चक्र, गदा एवं पद्मधारी रूप का दर्शन हुआ। उनके चरणों में प्रणाम करते हुये नारद जी ने प्रश्न किया - "हे भगवन्! कलियुग में ऐसा कौन-सा व्रत है, जिससे मनुष्य जीवन के समस्त कष्टों से मुक्त होकर पुण्य लाभ प्राप्त करे तथा अन्तकाल में मोक्ष को प्राप्त हो?"

भगवान विष्णु ने कहा - "हे नारद! जो मनुष्य 32 पूर्णिमा तिथियों तक श्रद्धा एवं नियमपूर्वक उपवास करता है, सत्यनारायण कथा का पाठ करता है, चन्द्रमा को अर्घ्य अर्पण करता है तथा ब्राह्मणों को दान करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक को प्राप्त होता है। मैं इस व्रत से सम्बन्धित एक कथा का वर्णन करता हूँ, कृपया ध्यानपूर्वक श्रवण करो -

प्राचीन काल में विदिशा नगरी में धर्मदत्त नामक एक ब्राह्मण निवास करता था। वह घोर निर्धन होते हुये भी अत्यन्त धर्मनिष्ठ एवं भक्ति भाव वाला मनुष्य था। एक समय उसे स्वप्न में भगवान विष्णु ने दर्शन देते हुये कहा – "हे धर्मदत्त! तुम 32 पूर्णिमाओं का व्रत करो। प्रत्येक पूर्णिमा को उपवास करो, सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ करो तथा ब्राह्मणों को भोजन कराओ। इससे तुम्हारे जीवन की दरिद्रता दूर होगी तथा अन्ततः तुम्हें मोक्ष प्राप्त होगा।"

धर्मदत्त ने भगवान विष्णु की आज्ञानुसार पूर्णिमा व्रत का पालन किया। प्रत्येक पूर्णिमा को स्नान, पूजन, कथा, अन्नदान, चन्द्रमा को अर्घ्य आदि सहित व्रत किया। 32वीं पूर्णिमा को उन्होंने ब्राह्मण भोज, हवन एवं विशेष पूजन के साथ व्रत का उद्यापन किया। तदुपरान्त उनके जीवन में अद्भुत परिवर्तन आया। इस दिव्य व्रत के प्रभाव से उन्हें धन-सम्पत्ति, यश एवं सन्तानों की प्राप्ति हुयी। अन्त समय में जब उनका भौतिक शरीर छूटा, तब इसी व्रत के पुण्यफल से उन्हें विष्णुलोक की प्राप्ति हुयी।"

Kalash
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