
हिन्दु पञ्चाङ्ग के अनुसार द्वादशी तिथि की वृद्धि होने पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक व्याप्त शुद्धा द्वादशी को वञ्जुली महाद्वादशी के रूप में मनाया जाता है। अधिक पढ़ें...
टिप्पणी: सभी समय १२-घण्टा प्रारूप में लँकेस्टर, संयुक्त राज्य अमेरिका के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय जो आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं, आगामि दिन से प्रत्यय कर दर्शाये गए हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।
हिन्दु पञ्चाङ्ग के अनुसार वैशाख माह के शुक्लपक्ष की द्वादशी को परशुराम द्वादशी अथवा रुक्मिणी द्वादशी के नाम से जाना जाता है। विभिन्न मतानुसार इस दिन भगवान विष्णु के परशुराम अवतार की पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान परशुराम को भगवान विष्णु के प्रमुख दशावतारों में से छठवाँ अवतार माना जाता है। अतः भगवान विष्णु का ही अवतार होने के कारण इस दिन केवल विष्णु पूजन करने से भी सम्पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। इसीलिये भक्तगण परशुराम द्वादशी के अवसर पर श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु के निमित्त व्रत का पालन करते हैं एवं उनका विशेष पूजन करते हैं।
धर्मग्रन्थों में वैशाख शुक्ल द्वादशी के दिन दान करने का भी अत्यन्त उत्तम फल वर्णित किया गया है। पद्मपुराण में कहा गया है कि वैशाख द्वादशी पर अन्न, जल, वस्त्र अथवा स्वर्ण का दान करने से मनुष्य को अनन्त गुणा फल प्राप्त होता है। अनेक हिन्दु धर्मग्रन्थों में द्वादशी व्रत की महिमा का वर्णन प्राप्त होता है।
नारदपुराण एवं भविष्यपुराण में प्राप्त वर्णन के अनुसार वैशाख शुक्ल द्वादशी के दिन भगवान मधुसूदन की पूजा अर्चना करनी चाहिये। भगवान विष्णु के अनेक पावन नामों में से एक नाम मधुसूदन भी है। अतः इस द्वादशी को मधुसूदन द्वादशी भी कहा जाता है।
नारदपुराण में प्राप्त विधान के अनुसार वैशाख शुक्ल द्वादशी को उपवास करते हुये श्रद्धापूर्वक देवेश्वर भगवान मधुसूदन को कलश परिमित दुग्ध से स्नान करायें तथा रात्रिकाल में तीन समय पूजन करते हुये जागरण करें। भगवान मधुसूदन की विधिवत् पूजा-अर्चना करके निम्नोक्त मन्त्र से एक सौ आठ आहुतियों का हवन करें -
नमस्ते मधुहन्त्रे च नमस्ते पुष्करेक्षण।
कैटभघ्न नमस्तेऽस्तु सुब्रह्मण्य नमोऽस्तु ते॥
भावार्थ - हे मधु नामक दैत्य का वध करने वाले प्रभो, आपको नमस्कार है! हे कमलनेत्र प्रभो, आपको नमस्कार है! हे कैटभ नामक दैत्य का नाश करने वाले स्वामी, आपको नमस्कार है! हे परम शुद्ध एवं सर्वमङ्गलमय भगवन्, आपको मेरा बारम्बार नमस्कार है।
अपनी सामर्थ्यानुसार घी का उपयोग करें। इस प्रकार उपरोक्त विधि के अनुसार वैशाख शुक्ल द्वादशी का व्रत करने से मनुष्य पापमुक्त हो जाता है तथा उसे आठ अश्वमेध यज्ञों का फल प्राप्त होता है।