समाज में अधिकांश व्यक्तियों को सम्पत्ति एवं समृद्धि की चाह होती है। जीवन में कदाचित प्रत्येक वस्तु के लिये धन की आवश्यकता होती है। यहाँ तक कि पूजन, हवन आदि धार्मिक गतिविधियों को सम्पन्न करने हेतु भी धन आवश्यक है। अतः सन्त एवं पण्डितों को भी अपने नित्य पूजन एवं हवन आदि धार्मिक क्रिया-कलापों को निरन्तर करने के लिये कुछ मात्रा में धन की आवश्यकता होती है।
अनेक व्यक्तियों को सम्पत्ति अर्जित करने में अत्यन्त कठिनाई होती है। वे सदैव अपने जीवन स्तर एवं सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि हेतु सम्पत्ति अर्जित करने के इच्छुक रहते हैं। कुछ व्यक्तियों द्वारा धन-सम्पत्ति प्राप्ति हेतु किये गये सभी प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं। अनेक व्यक्ति अपनी निर्धनता के लिये ग्रह-नक्षत्रों को दोषी मान कर अपनी समस्याओं के लिये ज्योतिषीय समाधान की खोज करते हैं।
वैदिक ज्योतिष में, मानव जीवन में उत्पन्न होने वाली समस्त प्रकार की बाधाओं एवं समस्याओं के लिये उपाय वर्णित हैं। इसी प्रकार दीवाली के विशेष अवसर पर किये जाने वाले धन-सम्पत्ति प्राप्ति के उपायों एवं अनुष्ठानों को अत्यधिक प्रभावशाली माना जाता है। हम दीवाली के अवसर पर देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति हेतु किये जाने वाले सर्वाधिक लोकप्रिय उपायों का उल्लेख कर रहे हैं। इनमें से कुछ उपाय अत्यन्त सरल हैं तथा पञ्चदिवसीय दीवाली उत्सव का अभिन्न भाग हैं।
दीवाली पर किये जाने वाले सम्पत्ति प्राप्ति के इन उपायों को साधारण बोलचाल में दीवाली टोटके कहा जाता है। आधुनिक समाज में टोटकों को तान्त्रिक गतिविधियों से सम्बन्धित तथा निषिद्ध माना जाता है। यद्यपि, दीवाली टोटके पूर्वकाल से ही किये जाते रहे हैं तथा वर्तमान में भी सम्पत्ति के इच्छुक व्यक्तियों में अत्यधिक लोकप्रिय हैं।
धनतेरस अथवा धन त्रयोदशी के अवसर पर घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर हल्दी एवं चावल के लेप से ॐ अङ्कित करने से घर में सम्पत्ति व समृद्धि का आगमन होता है।
यह अत्यन्त सरल उपाय है, क्योंकि हल्दी व चावल गृह उपयोगी वस्तुयें हैं तथा सरलता से प्रत्येक घर की रसोई में उपलब्ध होती हैं।
दीवाली पूजन के उपरान्त शङ्ख अथवा डमरू वादन करने से निर्धनता का नाश एवं समृद्धि का आगमन होता है।
शङ्ख अधिकांश हिन्दु परिवारों में पूजन स्थान पर सुशोभित रहता है। हालाँकि, डमरू अधिक प्रचलित नहीं है किन्तु दीवाली पूजन सामग्रियों में इसे सम्मीलित किया जा सकता है। यदि बाजार से शङ्ख व डमरू ले लिया जाये, तो यह भी एक सरल दीवाली उपाय है।
श्री गणेश, रिद्धि-सिद्धि के देवता हैं तथा श्री लक्ष्मी सम्पत्ति व समृद्धि की देवी हैं। लक्ष्मी यन्त्र तथा गणेश यन्त्र अत्यन्त शक्तिशाली यन्त्र हैं। संयुक्त लक्ष्मी-गणेश यन्त्र को महा यन्त्र कहा जाता है, जिसे अत्यधिक प्रभावशाली माना जाता है।
दीवाली के शुभः दिवस पर पूर्ण वैदिक विधि-विधान द्वारा लक्ष्मी-गणेश यन्त्र की स्थापना करने से घर में अक्षय सम्पत्ति का वास होता है। यह अनुष्ठान अथवा उपाय किसी विद्वान पण्डित द्वारा ही सम्पन्न करवाना चाहिये।
यन्त्र निर्माण हेतु आवश्यक समाग्रियों के लिये दिशा निर्देश दिये गये हैं। यन्त्र का सम्पूर्ण प्रभाव एवं लाभ प्राप्त करने हेतु, यन्त्र का आकर-प्रकार अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यन्त्र पर अङ्कित आकृतियाँ वैदिक धर्म ग्रन्थों में वर्णित दिशा निर्देशों पर ही आधारित होनी चाहिये।
घर में यन्त्र स्थापना करने हेतु प्राण प्रतिष्ठा आवश्यक होती है। प्राण प्रतिष्ठा के समय यन्त्र से सम्बन्धित देव अथवा शक्ति का आह्वान कर उनसे यन्त्र में निवास करने की प्रार्थना की जाती है। यन्त्र पर अङ्कित आकृति तथा यन्त्र स्थापना पूजन की प्रक्रिया पारस्परिक रूप से एक-दूसरे से सम्बन्धित होती है। अतः प्रत्येक यन्त्र की स्थापना एक निर्धारित पूजन प्रक्रिया के उपरान्त होती है। सामान्यतः वृत्त, रेखाओं एवं कोनों से पूजन प्रक्रिया निर्धारित नहीं होती है। यह स्मरण रहे कि, प्रत्येक हिन्दु देवी-देवता का अपना एक विशेष यन्त्र होता है तथा कोई भी दो यन्त्र एक समान नहीं होते हैं।
दीवाली के दिन प्रातः काल गन्ने की जड़ लाकर, दीवाली पूजन के समय देवी लक्ष्मी के साथ उसका पूजन करने से सम्पत्ति एवं समृद्धि का आगमन होता है।
महा लक्ष्मी का एक रूप धान्य लक्ष्मी भी है, जो अन्न एवं गन्ने से सम्बन्धित है। इन वस्तुओं का हिन्दु धर्म में विशेष महत्व है। गन्ने को पवित्र माना जाता है तथा अनेक हिन्दु देवी-देवताओं को एक हाथ में गन्ना धारण किये हुये दर्शाया जाता है।
यह एक अत्यन्त सरल उपाय है, क्योंकि भारतीय नगरों तथा ग्रामों में भारी मात्रा में किसान गन्ने की खेती करते हैं तथा विशेषतः दीवाली पूजा के समय जड़ सहित गन्ना बेचते हैं। हालाँकि, महानगरों में जड़ सहित गन्ना मिलना थोड़ा कठिन हो सकता है।
लक्ष्मी पूजन में देवी लक्ष्मी को कमल पुष्प अर्पित करें तथा कमल-गट्टे की माला से लक्ष्मी जाप करें।
देवी लक्ष्मी अन्य किसी चढ़ावे की तुलना में कमल पुष्प अर्पित करने से अधिक प्रसन्न होती हैं। यदि कमल पुष्प उपलब्ध नहीं हैं, तो कमल-गट्टे की माला से लक्ष्मी जाप करें। कमल-गट्टे की माला से किया गया 108 मन्त्र जाप, देवी लक्ष्मी को 108 कमल पुष्प अर्पित करने के समान है।
यह उपाय अत्यन्त शुलभ है। यदि किसी को दीवाली पूजा पर कमल पुष्प नहीं प्राप्त होते हैं, तो लक्ष्मी जाप हेतु कमल-गट्टे की माला का उपयोग किया जा सकता है। कमल-गट्टे की माला अत्यधिक सामान्य पूजन सामग्री है तथा सरलता से उपलब्ध हो जाती है।
यन्त्र साधना में चौंतीसा यन्त्र को अत्यन्त प्रभावशाली माना जाता है। चौंतीसा यन्त्र को प्रसन्नता एवं समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इनमें से एक चौंतीसा यन्त्र देवी लक्ष्मी को समर्पित है तथा लक्ष्मी चौंतीसा यन्त्र के रूप में लोकप्रिय है।
लक्ष्मी चौंतीसा यन्त्र का निर्माण अनार की लकड़ी से निर्मित कलम द्वारा लाल चन्दन की स्याही से भोजपत्र पर किया जाता है। यन्त्र को दीवाली पूजन के समय देवी लक्ष्मी के समक्ष स्थापित किया जाता है। अगले दिन यन्त्र को कार्यालय अथवा घर में धन के स्थान पर स्थापित किया जाता है। इस उपाय से घर तथा व्यापार में सम्पत्ति एवं समृद्धि का आगमन होता है।
यदि भोजपत्र, लाल चन्दन तथा अनार की कलम का प्रबन्ध हो जाता है, तो यह उपाय अत्यन्त सरल हो जाता है। इस उपाय को बिना किसी प्रकाण्ड पण्डित तथा ज्योतिषी के सहयोग से किया जा सकता है।
दीवाली के अवसर पर व्यापरियों के मध्य व्यापार वृद्धि यन्त्र निर्मित करना अत्यन्त प्रचलित है। इस यन्त्र का निर्माण अनार की लकड़ी से निर्मित कलम द्वारा अष्टगन्ध की स्याही से भोजपत्र पर किया जाता है। सामन्यतः अष्टगन्ध श्वेत चन्दन, रक्त चन्दन, केसर, कस्तूरी, कपूर, अगर, तगर तथा कुमकुम के मिश्रण से निर्मित होती है। पारम्परिक रूप से दीवाली पूजन के समय कार्यालय में इस यन्त्र को अङ्कित किया जाता है।
व्यापार वृद्धि यन्त्र दो यन्त्रों का संयुक्त रूप हैं तथा यह दोनों यन्त्र एक-दूसरे के परस्पर निर्मित होते हैं। मान्यताओं के अनुसार यह यन्त्र व्यापार में वृद्धि करता है। यह स्मरण रहे कि व्यापार वृद्धि यन्त्र, लक्ष्मी-गणेश यन्त्र से भिन्न है।
यदि भोजपत्र, लाल चन्दन तथा अनार की कलम का प्रबन्ध हो जाता है, तो यह उपाय अत्यन्त सरल हो जाता है। इस उपाय को बिना किसी प्रकाण्ड पण्डित तथा ज्योतिषी के सहयोग से किया जा सकता है। यदि हाथों द्वारा यन्त्र निर्माण सम्भव न हो, तो विकल्प स्वरूप धातु निर्मित व्यापार वृद्धि यन्त्र क्रय कर पूजन स्थान पर स्थापित किया जा सकता है।
दीवाली अमावस्या का दिन, महालक्ष्मी यन्त्र की पूजा और इसे घर अथवा कार्यालय में स्थापित करने हेतु, सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। दस महाविद्या स्वरूपों में से एक देवी कमला, देवी लक्ष्मी को ही निरूपित करती हैं। देवी लक्ष्मी को समर्पित समस्त प्रकार के पूजन-अनुष्ठान, देवी कमला साधना का ही एक भाग हैं। अपितु, श्री सूक्त साधना भी देवी कमला को ही समर्पित है।
अतः महालक्ष्मी का मूल मन्त्र ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नमः॥ देवी कमला को समर्पित है तथा यह महालक्ष्मी यन्त्र स्थापना हेतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण मन्त्र है। इस मन्त्र में 27 अक्षर हैं जिसके कारण यह मन्त्र देवी कमला का सप्तविंशाक्षर मन्त्र कहलाया जाता है। महालक्ष्मी यन्त्र पूजन इस सप्तविंशाक्षर मन्त्र पर ही आधारित है।
दीपावली के शुभ दिवस पर पूर्ण वैदिक विधि-विधान द्वारा महालक्ष्मी यन्त्र की स्थापना करने से घर में अक्षय सम्पत्ति व समृद्धि का वास होता है। महालक्ष्मी यन्त्र स्थापना मात्र किसी प्रकाण्ड पण्डित द्वारा ही की जा सकती है, क्योंकि लक्ष्मी यन्त्र पूजा विधि में षष्ट आवरण पूजा सहित अनेक अनुष्ठान किये जाते हैं।
श्री सूक्त, सम्पत्ति एवं समृद्धि की देवी लक्ष्मी को समर्पित एक वैदिक स्तोत्र है। यह स्तोत्र इतना अधिक पवित्र एवं शक्तिशाली है कि, इसका प्रयोग लक्ष्मी साधना के लिये किया जाता है। श्री सूक्त द्वारा किये जाने वाले लक्ष्मी पूजन को श्री सूक्त साधना कहा जाता है तथा यह साधना श्री सूक्त यन्त्र के माध्यम से की जाती है। श्री सूक्त यन्त्र की स्थापना विभिन्न वैदिक मन्त्रोच्चारण के साथ श्री सूक्त पूजा विधि के अनुसार की जाती है। सभी अनुष्ठानों सहित विस्तृत यन्त्र पूजा मात्र किसी प्रकाण्ड पण्डित की सहायता से ही सम्पन्न की जा सकती है।
हालाँकि, दीवाली पूजा के समय यन्त्र को पूजन स्थल पर देवी लक्ष्मी तथा भगवान गणेश के साथ स्थापित कर सामान्य यन्त्र पूजन भी किया जा सकता है। पूजन के समय श्री सूक्त स्तोत्र का पाठ करना चाहिये। हिन्दु मान्यताओं के अनुसार, श्री सूक्त स्तोत्र में माता लक्ष्मी की असीम कृपा समाहित है तथा श्री सूक्त स्तोत्र साधना करने से साधक को दीर्घकालीन सम्पत्ति व समृद्धि की प्राप्ति होती है।
उल्लू को हिन्दु धर्म में पूजनीय माना जाता है। उल्लू देवी लक्ष्मी का अत्यन्त प्रिय पक्षी है। सम्पत्ति एवं समृद्धि की देवी से सम्बन्धित होने के कारण उल्लू को देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने हेतु उपयुक्त माध्यम माना जाता है। अतः दीवाली की रात्रि में सम्पत्ति, समृद्धि एवं प्रसन्नता प्राप्ति हेतु उल्लू से सम्बन्धित अनेक प्रकार के टोटके किये जाते हैं।
इन टोटकों का विस्तृत वर्णन हमारे अन्य लेख उल्लू दीवाली टोटके में किया गया है।