देवी दुर्गा, हिन्दु धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। हिन्दु धर्म में की जाने वाली पञ्चदेव उपासना के अन्तर्गत देवी दुर्गा की भी पूजा-अर्चना भी की जाती है। पञ्च देव उपासना में भगवान गणेश, भगवान शिव, भगवान विष्णु, भगवान सूर्यदेव तथा देवी दुर्गा की आराधना की जाती है। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार, माँ दुर्गा ने सदाचारियों की रक्षा हेतु अवतार धारण किया था। दुर्गम नामक एक भीषण दैत्य का वध करने के कारण देवी आद्यशक्ति दुर्गा के नाम से विख्यात हुयीं।
श्रीमद् देवी भागवत पुराण के अनुसार, वेद-पुराणों की रक्षा और अधर्मियों का नाश करने हेतु देवी माँ का अवतरण हुआ था। ऋगवेद में प्राप्त वर्णन के अनुसार, माँ दुर्गा ही आदि-शक्ति हैं, वे समस्त सृष्टि का सञ्चालन करती हैं तथा वे एकमात्र ही अविनाशी हैं। कुँवारी कन्या और कलश को देवी दुर्गा का प्रतीक माना जाता है। देवी दुर्गा को जगदम्बा, आदि शक्ति एवं नारायणी आदि नामों से भी जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, देवी दुर्गा ही ग्रहमण्डल के समस्त ग्रहों को शासित करती हैं।
देवी दुर्गा का एक नाम सती भी है। देवी दुर्गा ने दक्ष प्रजापति की पुत्री के रूप में जन्म लिया था, उस समय वे सती के नाम से विख्यात हुयी थीं।
एक समय दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ आयोजित किया, जिसमें दक्ष ने सभी देवी-देवताओं को आमन्त्रित किया, किन्तु शिव एवं सती को आमन्त्रण नहीं दिया। आमन्त्रित न होने पर भी देवी सती अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में पधारीं, किन्तु वहाँ दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान किये जाने से क्रुद्ध होकर, देवी माँ ने उग्रचण्डी का रूप धारण कर यज्ञ का विध्वंश कर दिया।
देवी उग्रचण्डी का रूप अति भयङ्कर हैं तथा उनकी 18 भुजायें हैं। शाक्त सम्प्रदाय के अनुयायी एवं देवी माँ के भक्तगण हिन्दु अमान्त कैलेण्डर के अनुसार, आश्विन माह (पूर्णिमान्त कैलेण्डर के अनुसार कार्तिक माह) में कृष्णपक्ष की नवमी तिथि पर देवी माँ के प्रादुर्भाव दिवस के उपलक्ष्य में, विशेष रूप से देवी उग्रचण्डी की पूजा-अर्चना करते हैं। कालान्तर में देवी उग्रचण्डी ही दुर्गम नामक दैत्य का संहार करके, देवी दुर्गा के नाम से समस्त लोकों में विख्यात हुयी हैं।
देवी दुर्गा को भगवान शिव की शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है। मान्यताओं के अनुसार, देवी पार्वती एवं देवी दुर्गा एक ही हैं, अतः भगवान गणेश एवं कुमार कार्तिकेय, देवी दुर्गा के पुत्र हैं तथा अशोकसुन्दरी, ज्योति एवं मनसा देवी उनकी पुत्रियाँ हैं।
विभिन्न धर्म ग्रन्थों में देवी दुर्गा के रक्त वर्ण, पीत वर्ण तथा केसरिया वर्ण के रूपों का वर्णन प्राप्त होता है। देवी दुर्गा को एक सिंह पर अष्टभुजा रूप में विरजमान दर्शाया जाता है। वह अपनी 18 भुजाओं में त्रिशूल, चक्र, गदा, धनुष, शङ्ख, तलवार, कमल, तीर, परशु, रस्सी, पाश, भाला, ढाल, डमरू, खप्पर, घण्टी, माला तथा अभयहस्त धारण करती हैं।
देवी दुर्गा की उपासना हेतु नवरात्रि का समय सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। वर्ष में चार नवरात्रि उत्सव होते हैं, जिन्हें चैत्र नवरात्रि, शारदीय नवरात्रि, माघ गुप्त नवरात्रि तथा आषाढ़ गुप्त नवरात्रि के रूप में जाना जाता है। शारदीय नवरात्रि, सभी नवरात्रियों में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण नवरात्रि है, इसीलिये शारदीय नवरात्रि को महा नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है।
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में, नवरात्रि के अन्तिम पाँच दिनों में विशेष रूप से दुर्गा पूजा की जाती है। इसके अतिरिक्त देवी माँ के भक्त, प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर दुर्गाष्टमी का उपवास करते हैं, जिसे मासिक दुर्गाष्टमी के रूप में जाना जाता है। आश्विन माह की शारदीय नवरात्रि उत्सव में आने वाली अष्टमी को मुख्य दुर्गाष्टमी अथवा महाष्टमी कहा जाता है।
सामान्य मन्त्र -
ॐ श्री दुर्गायै नमः।
बीज मन्त्र -
ॐ दुं दुर्गाय नमः।
श्री दुर्गा गायत्री मन्त्र -
ॐ गिरिजाय च विद्महे शिवप्रियाय च धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्॥
देवी दुर्गा की स्तुति -
ॐ सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥
ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते॥