टिप्पणी: सभी समय १२-घण्टा प्रारूप में नई दिल्ली, भारत के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय जो आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं, आगामि दिन से प्रत्यय कर दर्शाये गए हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।
परशुराम जयन्ती, भगवान विष्णु के छठवें अवतार के जन्म की वर्षगाँठ के रूप में मनायी जाती है। यह वैशाख माह में शुक्ल पक्ष तृतीया के समय पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि, परशुराम का जन्म प्रदोष काल के समय हुआ था तथा इसीलिये जिस दिन प्रदोष काल के दौरान तृतीया तिथि होती है उस दिन को परशुराम जयन्ती का उत्सव मानाया जाता है। भगवान विष्णु ने पापी, विनाशकारी तथा अधार्मिक राजाओं का विनाश कर पृथ्वी का भार हरने हेतु परशुराम जी के रूप में छठवाँ अवतार धारण किया था। इन दुष्ट राजाओं ने पृथ्वी के संसाधनों को लूटा तथा राजाओं के रूप में अपने कर्तव्यों की उपेक्षा की थी।
हिन्दु मान्यताओं के अनुसार, अन्य सभी अवतारों के विपरीत, परशुराम जी वर्तमान में भी पृथ्वी पर ही निवास करते हैं। इसीलिये, श्री राम तथा श्री कृष्ण के विपरीत, परशुराम की पूजा नहीं की जाती है। दक्षिण भारत में, उडुपी के पास पवित्र स्थान पजाका में, एक प्रमुख मन्दिर स्थित है जो परशुराम जी को समर्पित है। भारत के पश्चिमी तट पर भगवान परशुराम को समर्पित अनेक मन्दिर अवस्थित हैं।
कल्कि पुराण में वर्णित है कि, परशुराम भगवान विष्णु के 10वें एवं अन्तिम अवतार श्री कल्कि को शस्त्र विद्या प्रदान करने वाले गुरु होंगे। यह प्रथम अवसर नहीं है कि भगवान विष्णु के छठवें अवतार किन्हीं अन्य अवतार से भेंट करेंगे। रामायण के अनुसार, देवी सीता एवं भगवान राम के विवाह समारोह में परशुराम जी का आगमन हुआ था तथा भगवान विष्णु के 7वें अवतार श्री राम जी से उनकी भेंट हुयी थी।
भगवान विष्णु के परशुराम अवतार के विषय में विस्तृत वर्णन पढ़ने हेतु कृपया उक्त लेख का अवलोकन करें - परशुराम अवतार।