दीवाली के दिन अमावस्या तिथि पर भगवान गणेश एवं देवी लक्ष्मी की नवीन प्रतिमाओं की पूजा की जाती है। लक्ष्मी-गणेश पूजा के अतिरिक्त इस दिन कुबेर पूजा तथा बही-खाता पूजा भी की जाती है।
दीवाली पूजा के दिन एक दिवसीय उपवास का पालन किया जाना चाहिये। स्वयं की क्षमता एवं इच्छा-शक्ति के अनुरूप आप इस दिन निर्जल (बिना जल पिये) या फलाहार (मात्र फल ग्रहण करके) या दूध मात्र से उपवास कर सकते हैं।
दीवाली पूजा उचित दीवाली पूजा मुहूर्त में ही की जानी चाहिये। दीवाली पूजा मुहूर्त निर्धारित करनें में स्थिर लग्न, प्रदोषकाल एवं अमावस्या तिथि पर विचार किया जाता है। सम्पूर्ण दीवाली पूजा में निम्नलिखित पूजा सम्म्लित होती हैं।
उपरोक्त पूजा सम्पूर्ण विधि-विधान से की जाती है। सम्पूर्ण दीवाली पूजा सम्पन्न करने में कुछ घण्टों का समय लग सकता है। यह सम्भव है कि लक्ष्मी पूजा मुहूर्त अल्प समय के लिये ही उपलब्ध हो और उसमें सम्पूर्ण दीवाली पूजा सम्पन्न न की जा सके। अतः दीवाली पूजा, लक्ष्मी पूजा मुहूर्त से पूर्व ही आरम्भ की जा सकती है, जिससे लक्ष्मी पूजा का समय उपलब्ध मुहूर्त के साथ संयोजित हो सके। शेष पूजा, लक्ष्मी पूजा मुहूर्त के समाप्त होने के पश्चात् भी की जा सकती है।
यह स्मरण रहे कि दीवाली पूजा में प्रज्वलित किया गया दीप रात्रि पर्यन्त निर्विघ्न प्रज्वलित रहना चाहिये। पूजनोपरान्त श्री सूक्त, लक्ष्मी सूक्त तथा देवी लक्ष्मी की अन्य स्तुतियों का पाठ करना चाहिये। यदि सम्भव हो तो देवी लक्ष्मी की स्तुति हेतु जागरण करना चाहिये।